
Karak in Hindi : आज इस लेख में आपको बताएँगे की कारक किसे कहते है – परिभाषा, भेद, चिन्ह और उदाहरण के साथ जानेंगे बचपन से हमें पढना-लिखना सिखाया जाता है। जब भी हम छोटी कक्षाओं में होते है तो हमें हिंदी हिंदी भाषा के समझे के लिए हिंदी व्याकरण सिखाया जाता है।
जिसमे अधिकतर संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, कारक आदि सिखाया जाता है इस पोस्ट में हम आपको Karak in Hindi यानि करक का परिभाषा, भेद, चिन्ह आदि बेहद सरल भाषा में सिखायेगे इस लिए लेख पर अंत तक बने रहे।
कारक किसे कहते है? – Karak in Hindi
संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो वाक्य के अन्य शब्दों क क्रिया से अपना संबंध प्रकट करता है, कारक कहलाता है या, जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम शब्दों वाक्यों के क्रिया के साथ जोड़ते है, उन्हें कारक कहते है प्रत्येक करक का आपना चिन्ह होता है जैसे- ने, को, से, के द्वारा, के लिए, से, का, में, हे आदि इन सभी चिन्हों को विभक्ति कहा जाता है जैसे –
- राम ने रावण को मारा।
- उसने उसको पढ़ाया।
प्रथम वाक्य में दो संज्ञा-शब्द (राम तथा रावण) और एक क्रिया-शब्द (मारा) हैं। दोनों संज्ञा शब्दों का आपस में तो संबंध ही, मुख्य रूप से उनका संबंध क्रिया (मारा) से भी है। जैसे –
- रावण को किसने मारा ? – राम ने।
- राम ने किसको मारा ? – रावण को।
यहाँ, मारने की क्रिया राम करते हैं, अतः राम ने = कर्ताकारक और मारने (क्रिया) का फल रावण पर पड़ता है, अतः रावण को = कर्मकारक।
स्पष्ट है कि करनेवाला कर्ताकारक हुआ, इसका चिह्न ‘ने’ है और जिसपर फल पड़ा, वह कर्मकारक हुआ, जिसका चिह्न ‘को’ है।
कारक के चिह्न – Karak Chinh
विभक्ति | कारक | कारक-चिह्न |
प्रथमा | कर्ता | ने, 0 |
द्वितीया | कर्म | को, 0 |
तृतीया | करण | से, द्वारा |
चतुर्थी | संप्रदान | को, के लिए |
पंचमी | अपादान | से |
षष्ठी | संबंध | का, के, की |
सप्तमी | अधिकरण | में, पर |
अष्टमी (प्रथमा) | संबोधन | हे, अरे आदि। |
यहाँ इस बात का खयाल रखें-कारकों के साथ क्रमशः गणनावाले शब्द हे, अरे आदि । प्रथमा, द्वितीया आदि ही विभक्ति हैं, लेकिन सामान्य भाषा में ‘कारक-चिह्नों” को विभक्ति के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
कारक के भेद – Karak Ke Bhed
कारक के आठ भेद निम्नलिखित हैं।
- कर्ता कारक
- कर्म कारक
- करण कारक
- सम्प्रदान कारक
- अपादान कारक
- संबंध कारक
- अधिकरण कारक
- सम्बोधन कारक
1. कर्ता कारक किसे कहते हैं?
जो काम (क्रिया) करता है उसे कर्ता कहते हैं संस्कृत में कर्ता को ही कर्ताकारक कहते है। इसका चिह्न अर्थात् इसकी विभक्ति ‘0’ और एवं ने’ है। जैसे –
- मोहन खाता है। — (0-विभक्ति)
- मोहन ने खाया। — (ने’ विभक्ति)
दोनों वाक्यों से स्पष्ट है कि खाने का काम (क्रिया) मोहन करता है। जहाँ पहले वाक्य में ने’ चिह्न लुप्त है या छिपा हुआ है, वहीं दूसरे वाक्य में यह चिह्न स्पष्ट है।
2. कर्म कारक किसे कहते हैं?
कर्मकारक कर्ता द्वारा संपादित क्रिया का प्रभाव जिस व्यक्ति या वस्तु पर पड़े उसे कर्मकारक कहते है। इसका चिह्न ‘०’ एवं ‘को’ है। जैसे –
- सोहन आम खाता है। — (o-विभक्ति)
- सोहन मोहन को पीटता है। — (को–विभक्ति)
यहाँ खाना (क्रिया) का फल ‘आम’ पर और पीटना (क्रिया) का फल ‘मोहन’ पर पड़ता है, अतः ‘आम’ और ‘मोहन को’ कर्मकारक है। ‘आम’ के साथ ‘को’ चिह्न छिपा है, लेकिन मोहन के साथ यह चिह्न ‘को’ स्पष्ट है।
3. करण कारक किसे कहते हैं?
जो वस्तु क्रिया के संपादन में साधन का काम करे उसे करणकारक कहते है। इसके चिह्न है— से’ और ‘द्वारा’। जैसे —
- मैं कलम से लिखता हूँ। — (कलम लिखने का साधन)
- उसकी उँगली चाकू द्वारा कट गई। — (चाकू कटने का साधन)
यहाँ, ‘कलम से’ और ‘चाकू द्वारा’-करणकारक है, क्योकि ये वस्तुएँ क्रिया-संपादन में साधन के रूप में प्रयुक्त हैं।
4. संप्रदान कारक किसे कहते हैं?
जिसके लिए कोई क्रिया (काम) की जाए उसे संप्रदानकारक कहते हैं। इसके दो चिह्न है— ‘को’ और ‘के लिए। जैसे—
- राम ने श्याम को पुस्तक दी।
- राम ने श्याम के लिए पुस्तक खरीदी।
यहाँ, देने और खरीदने की क्रिया श्याम के लिए है। अतः, श्याम को एवं ‘श्याम के लिए’ संप्रदानकारक हैं।
5. अपादान कारक किसे कहते हैं?
अगर क्रिया के संपादन में कोई वस्तु अलग हो जाए. तो उसे अपादानकारक कहते है। इसका चिह्न ‘से’ है। जैसे—
- पेड़ से पत्ते गिरते हैं। — (पत्ते का अलगाव-पेड़ से)
- छात्र कमरे से बाहर गया। — (छात्र का अलगाव-कमरे से)
यहाँ, ‘पेड़ से’ और ‘कमरे से अपादानकारक है क्योंकि गिरते समय पत्ते पेड़ से और जाते समय छात्र कमरे से अलग हो गए।
6. संबंध कारक किसे कहते हैं?
जिस संज्ञा या सर्वनाम से किसी वस्तु का संबंध जान पड़े उसे संबंधकारक कहते है। इसके चिह्न है-‘का’, ‘के’ और ‘की’ । जैसे-
- मोहन का घोड़ा दौड़ता है। — उसका घोड़ा दौड़ता है।
- मोहन के घोड़े दौड़ते हैं। — उसके घोड़े दौड़ते हैं।
- मोहन की घोड़ी दौड़ती है। — उसकी घोड़ी दौड़ती है।
यहाँ, मोहन ‘का, के, की या उस ‘का, के, की’ संबंधकारक है, क्योंकि का घोड़ा के घोड़े, की घोड़ी का संबंध मोहन (संज्ञा) या उस (सर्वनाम) से है। यही एक कारक है जिसका संबंध क्रिया से न होकर व्यक्ति या वस्तु से रहता है।
7. अधिकरण कारक किसे कहते हैं?
जिससे क्रिया के आधार का ज्ञान प्राप्त हो, उसे अधिकरणकारक कहते हैं। इसके चिह्न है— ‘मे’ और ‘पर’ जैसे—
- शिक्षक वर्ग में पढ़ा रहे हैं। — महेश छत पर बैठा है।
यहाँ, ‘वर्ग में’ और ‘छत पर’ अधिकरणकारक हैं, क्योंकि इनसे पढ़ाने और बैठने की क्रिया के आधार का ज्ञान होता है।
8. संबोधन कारक किसे कहते हैं?
जिस संज्ञा से किसी के पुकारने या संबोधन का बोध हो उसे संबोधनकारक कहते हैं। इसके चिह्न हैं—हे, अरे, अजी, ऐ, ओ, आदि। जैसे –
- हे ईश्वर, मेरी सहायता करो। — अरे दोस्त, जरा इधर आओ।
यहाँ, ‘हे ईश्वर’ और ‘अरे दोस्त’ संबोधनकारक हैं। कभी-कभी संबोधनकारक के नहीं रहने पर भी संबोधन व्यक्त होता है। जैसे—
- मोहन, जरा इधर आओ — मित्रो, समय आ गया है।
- भगवान्, मुझे बचाओ। — बहनो, आप अपनी शक्ति पहचानें।
कारकों को संक्षेप में इस प्रकार याद रखें
- कर्ता ने कर्म को; करण से; संप्रदान को, के लिए; अपादान से; संबंध का, के, की, अधिकरण में, पर, संबोधन हे, अरे आदि ।
- हे भरत ! राम ने रावण को, धनुष से, सीता के लिए, रथ से उतरकर, बाणों की बौछार कर धरती पर मार गिराया।
इस बात को समझें :- हे भरत, संबोधनकारक है। संबोधनकारक गणना की दृष्टि से आठवें स्थान पर है, लेकिन इसका प्रयोग प्रथम स्थान पर किया। जाता है। यहाँ भी संबोधनकारक (हे भरत) वाक्य में प्रथम स्थान पर प्रयुक्ता है, अतः संबोधनकारक को ‘प्रथमा विभक्ति’ भी कहा जाता है।
कारक-चिह्नों के विविध प्रयोग
अभी तक आपने कारक-भेद और उनके अर्थों को समझा। अब विविध कारक चिह्नों और उनके विविध प्रयोगों को समझे—
‘ने’ चिह्न का प्रयोग कहाँ-कहाँ होता है?
1. जब क्रिया सकर्मक हो, तब सामान्य भूत, आसन्न भूत, पूर्ण भूत, संदिग्ध भूत और हेतुहेतुमद् भूत कालों में कर्ता के ‘ने’ चिह्न का प्रयोग होता है। जैसे—
- सामान्य भूत — उसने रोटी खाई।
- आसन्न भूत — उसने रोटी खाई है।
- पूर्ण भूत — उसने रोटी खाई थी।
- संदिग्ध भूत — उसने रोटी खाई होगी।
- हेतुहेतुमद् भूत — अगर उसने रोटी खाई होती, तो पेट भर गया होता।
2. अकर्मक क्रिया में कर्ता के ‘ने’ चिह्न का प्रयोग प्रायः नहीं होता, लेकिन नहाना, खाँसना, छींकना, थूकना, भूँकना आदि अकर्मक क्रियाओं में इस चिह्न का प्रयोग उपर्युक्त भूतकालों में होता है। जैसे—
- राम ने नहाया।
- उसने छीका था।
- मैंने थूका होगा।
- उसने खाँसा है।
3. जब अकर्मक क्रिया सकर्मक बन जाती है, तब इस चिह्न का प्रयोग उपर्युक्त भूतकालों में होता है। जैसे उसने बच्चे को रुलाया। जैसे—
- मैंने कुत्ते को जगाया था।
- उसने बिल्ली को सुलाया होगा।
- माँ ने बच्चे को हँसाया ।
4. यदि अकर्मक क्रिया के साथ कोई सजातीय कर्म आ जाए तो उपर्युक्त भूतकालिक प्रयोगों में यह चिह्न प्रयुक्त होगा। जैसे उसने तीखी बोलियाँ बोली। जैसे—
- उसने टेढ़ी चाल चली है। — (बोली बोलना)
- उसने टेढ़ी चाल चली है। — (चाल चलना)
- उसने कई लड़ाइयाँ लड़ी थी। — (लड़ाई लड़ना)
5. यदि संयुक्त क्रिया का अंतिम खंड सकर्मक हो, तो उपर्युक्त भूतकालों में इस चिह्न का प्रयोग होगा। जैसे—
- उसने जी भरकर टहल लिया।
- उसने जी भरकर टहल लिया है।
- मैंने दिल खोलकर हँस लिया था।
- उसने दिल खोलकर रो लिया होगा।
यदि उसने दिल खोलकर रो लिया होता, तो मन शांत हो जाता।
6. देना’ या ‘डालना’ क्रिया के पहले यदि कोई अकर्मक क्रिया भी हो, तो अपूर्ण भूत और हेतुहेतुमद् भूत कालों को छोड़कर सभी भूतकालो में इस चिह्न का प्रयोग होगा। जैसे—
- सामान्य भूत — उसने घंटो सो डाला।
- आसन्न भूत — उसने घंटों सो डाला है।
- पूर्ण भूत — उसने घंटों सो डाला था।
- संदिग्ध भूत — उसने घंटों सो डाला होगा।
7. कभी-कभी अनुमतिसूचक अकर्मक क्रिया का रूप सकर्मक की तरह होताहै, तब उपर्युक्त भूतकालों में इस चिह्न का प्रयोग होगा। जैसे—
- मोहन ने मुझे बोलने न दिया।
- डॉक्टर ने उसे टहलने दिया था।
- सिपाही ने चोर को भागने न दिया होगा।
8. इच्छासूचक क्रिया रहने पर उपर्युक्त भूतकालों में इस चिह्न का प्रयोग होता है। जैसे—
- मैंने रोना चाहा। उसने हँसना चाहा है।
- उसने आना चाहा था। सोहन ने जाना चाहा होगा।
‘ने’ चिह्न का प्रयोग कहाँ-कहाँ नहीं होता है?
कर्ता के ‘ने’ चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित अवस्थाओं में न करे—
1. वर्तमानकाल और भविष्यत्काल के सभी भेदों तथा मात्र अपूर्ण भूतकाल में इस चिह्न का प्रयोग नहीं होता है। जैसे—
- वह खाता है। वे खेलेंगे।
- वह खा रहा है। वे खेलते रहेंगे।
- वह खा रहा था। मैं पढ़ चुकूँगा ।
2. वैसे तो सिर्फ अपूर्ण भूतकाल को छोड़कर सभी भूतकालों में, सकर्मक क्रिया रहने पर इस चिह्न का प्रयोग होता है, लेकिन पूर्वकालिक क्रिया रहने पर, इस चिह्न का प्रयोग नहीं होता। जैसे—
- वह आकर पढ़ा। मैं नहाकर खाया था ।
- वह बैठकर गया है। वह सोकर लिखा होगा।
3. वैसे तो सकर्मक क्रिया रहने पर भूतकालिक प्रयोग में ‘ने’ चिह्न लगता है, लेकिन कुछ सकर्मक क्रियाओं—बकना, बोलना, भूलना, समझना आदि के रहने पर इस चिह्न का प्रयोग न करे। जैसे—
- वह मुझसे बोली तुम नहीं समझे थे।
- श्याम गाली बका है। वह मुझे भूल गया होगा।
4. अकर्मक क्रियाओं के भूतकालिक प्रयोग में इस चिह्न का प्रयोग न करें। जैसे—
- वह आया। तुम नहीं गए?
- राम दौड़ा। वह सो गया था।
5. संयुक्त क्रिया का अंतिम खंड अकर्मक हो, तो भूतकालिक प्रयोग में इस चिह्न का प्रयोग नहीं होगा। जैसे—
- वह रसोई बना चुकी (बना चुकी संयुक्त किया)
6. सजातीय कर्म के रहने पर भी ‘बैठना’ किया के साथ भूतकालिक प्रयोग में इस चिह्न का प्रयोग नहीं होता है। जैसे—
- वह अंगद की बैठक बैठा।
- सोहन अपाहिज की बैठक बैठा था।
7. नित्यबोधक संयुक्त क्रिया के रहने पर इस चिह्न का प्रयोग नहीं होता है। जैसे—
- सेना आगे बढ़ती गई। वृक्ष बढ़ता गया।
- लड़की सयानी होती गई। वह खाता गया
8. चुकना, जाना और सकना के भूतकालिक प्रयोग में इस चिह्न का प्रयोग न करें। जैसे—
- वह लिख चुका। राम बोल न सका।
- तुम पटना गए? तू गा न सका।
‘को’ चिह्न का प्रयोग कहाँ-कहाँ होता है।
‘को’ कर्मकारक का चिह्न है?
इसका प्रयोग कर्मकारक के अतिरिक्त कुछ दूसरे कारकों में भी होता है। जैसे—
1. कर्मकारक के रूप में—
राम ने रावण को मारा। (रावण को–कर्मकारक)
2. कर्मकारक के रूप में, प्रेरणार्थक क्रिया के गौण कर्म में—
- शिक्षक छात्र को हिन्दी पढ़ाते हैं। (छात्र को गौण कर्म)
- माँ बच्चे को खाना खिलाती है। (बच्चे को गौण कर्म)
3. यदि अस्तित्व के अर्थ में ‘होना’ क्रिया का प्रयोग हो, तो कर्मकारक के ‘को’ का रूपांतर ‘के’ में हो जाता है। जैसे—
- सोहन के पुत्र हुआ है। (‘को’ के बदले ‘के’)
- उसके दो पत्नियाँ हैं (‘को’ के बदले ‘के’)
4. कर्ताकारक के रूप में, क्रिया की अनिवार्यता प्रकट करने के लिए—
- राम को पटना जाना होगा। (राम को–कर्ताकारक)
- मोहन को पत्र लिखना है। (मोहन को–कर्ताकारक)
5. कर्ताकारक के रूप में, दस्त, टट्टी आदि शारीरिक आवेगों की अभिव्यक्ति के लिए—
- रोगी को बिछावन पर टट्टी हो गईं। (रोगी को–कर्ताकारक)
- श्याम को के हो गई। (श्याम को–कर्ताकारक)
6. कर्ताकारक के रूप में, मानसिक आवेगों की अभिव्यक्ति के लिए—
- गीता को दुःख हुआ।
- सीता को चिंता सता रही है।
7. कर्ताकारक में, यदि ‘दे सहायक क्रिया के रूप में प्रयुक्त हो—
- सोहन को आम खाने दो। (सोहन को–कर्ताकारक)
- मोहन को किताब पढ़ने दो। (मोहन को– कर्ताकारक)
8. संप्रदानकारक के रूप में—
- राम ने श्याम को पुस्तक दी। (श्याम को— संप्रदानकारक)
- छात्र ने शिक्षक को पुस्तक दी। (शिक्षक को— संप्रदानकारक)
9. यदि इच्छासूचक के रूप में— मन, जी आदि का प्रयोग हो—
- भगवद्गीता पढ़ने को मन करता है। (पढ़ने को— संप्रदानकारक)
- रामायण सुनने को जी करता है। (सुनने को – संप्रदानकारक)
10. अधिकरण के रूप में, समयसूचक शब्दों के साथ—
- वह प्रतिदिन रात को आता है। (रात को— संप्रदानकारक)
- वह चार बजे सुबह को जाता है। (सुबह को—संप्रदानकारक)
‘से’ का प्रयोग कहाँ-कहाँ होता है?
1. अपादान और करण दोनों कारकों का चिह्न ‘से’ है, लेकिन दोनों में अर्थ की दृष्टि से बहुत अंतर है। जहाँ करण का ‘से’ साधन का अर्थ सूचित करता है, वहाँ अपादान का ‘से’ अलगाव का। जैसे—
- मैं कलम से लिखता हूँ। (कलम से—करणकारक)
- पेड़ से पत्ते गिरते हैं। (पेड़ से अपादानकारक)
2. करण का प्रयोग ‘हेतु’ के अर्थ में—
- वह किसी काम से आया है। (काम से काम हेतु)
3. करण का प्रयोग कारण बतलाने के अर्थ में—
- वह प्लेग से मर गया। (मरने का कारण प्लेग)
4. करण का प्रयोग प्रेरणार्थक क्रिया में—
- जेलर कैदी से काम करवाता है। (कर्ता जेलर है, कैदी नहीं)
प्रकाशक लेखक से किताब लिखवाता है। (कर्ता प्रकाशक है, लेखक नही)
5. अपादान का प्रयोग दिशा-बोध कराने में—
- बिहार झारखंड से उत्तर है।
6. अपादान का प्रयोग तुलना के अर्थ में—
- सीता गीता से सुन्दर है। मोहन सोहन से लंबा है।
7. अपादान का प्रयोग समय-बोध कराने में—
- मैं सुबह से पढ़ रहा हूँ। वह दो वर्षों से तबला सीख रहा है।
8. कर्ताकारक के रूप में, जब अशक्ति प्रकट करनी हो—
- राम से रोटी खाई नहीं जाती। (कर्मवाच्य)
- सीता से चला नहीं जाता। (कर्मवाच्य)
9. कर्मकारक के रूप में, जब क्रिया द्विकर्मक रहती है—
- छात्र गुरु से हिन्दी सीख रहा है। सीता गीता से वीणा सीख रही है।
10. जाति, स्वभाव, प्रकृति, लक्षण आदि प्रकट करने में—
- राम जाति से क्षत्रिय थे। वे स्वभाव से दयालु है।
‘में’ और ‘पर’ का प्रयोग कहाँ-कहाँ होता है?
‘में’ और ‘पर’ अधिकरणकारक के चिह्न हैं। इनका प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है।
(क) ‘में’ का प्रयोग :
1. अधिकरणकारक के रूप में वस्तु, स्थान आदि के भीतर की स्थिति बतलाने में—
- छात्र कमरे में है।
- पानी में मछली है।
2. अधिकरणकारक के रूप में―प्रेम, घृणा, दोस्ती, दुश्मनी आदि भावों को प्रकट करने में—
- मोहन और सोहन में मित्रता है।
- दोनों में बहुत प्रेम है।
- आप में शराफत कूट-कूटकर भरी है।
3. अधिकरणकारक के रूप में—समय का बोध कराने हेतु—
- मैं सुबह में व्यायाम करता हूँ।
4. अधिकरणकारक के रूप में वस्त्र या पोशाक के संदर्भ में—
- औरते साड़ी में अच्छी लगती हैं।
- आप धोती में अच्छे लगते हैं।
5. अधिकरणकारक के रूप में जगह स्थान आदि बतलाने में—
- वह मुम्बई रहता है। (में-लुप्त है)
- मैं अब दिल्ली नहीं रहता हूँ। (में-लुप्त है)
6. करणकारक के रूप में किसी वस्तु का मूल्य बतलाने हेतु—
- यह पुस्तक चालीस रुपए में मिलती है।
- वह वस्त्र कितने रुपए में है ?
(ख) ‘पर’ का प्रयोग अधिकरणकारक में निम्नलिखित स्थितियों में होता है :
1. ऊपर का बोध कराने के लिए—
वह छत पर बैठा है। छत के ऊपर)
2. समय, दूरी तथा अवधि का बोध कराने के लिए—
- वह दस बजकर पाँच मिनट पर स्कूल गया। (समय)
- राँची यहाँ से दस मील पर है। (दूरी)
- वह पाँच दिनों पर लौटा। (अवधि)
3. संप्रदानकारक के रूप में–मूल्य बताने के लिए—
- आपका ईमान पैसे पर बिक गया।
- वह एक हजार रुपए मासिक पर काम नहीं करेगा ।
कुछ शब्दों के कारक रूप यहाँ दिए जा रहे हैं
संज्ञा की कारक-रचना
(बालक)
कारक | एकवचन | बहुवचन |
---|---|---|
कर्ता | बालक, बालक ने | बालक, बालकों ने |
कर्म | बालक, बालक को | बालक, बालक को |
करण | बालक (से, द्वारा) | बालकों (से, द्वारा) |
संप्रदान | बालक के लिए | बालकों के लिए |
अपादान | बालक से | बालकों से |
संबंध | बालक (का, के, की) | बालकों (का, के, की) |
अधिकरण | बालक (में, पर) | बालकों (में, पर) |
संबोधन | हे बालक | हे बालको |
(लड़का )
कारक | एकवचन | बहुवचन |
---|---|---|
कर्ता | लड़का, लड़के ने | लड़के, लड़कों ने |
कर्म | लड़का, लड़के को | लड़के, लड़कों को |
करण | लड़के (से, द्वारा) | लड़कों (से, द्वारा) |
संप्रदान | लड़के के लिए | लड़कों के लिए |
अपादान | लड़के से | लड़कों से |
संबंध | लड़के (का, के, की) | लड़कों (का, के, की) |
अधिकरण | लड़के (में, पर) | लड़कों (में, पर) |
संबोधन | हे लड़के | हे लड़को |
(नदी)
कारक | एकवचन | बहुवचन |
---|---|---|
कर्ता | नदी, नदी ने | नदियाँ, नदियों ने |
कर्म | नदी, नदी को | नदियाँ, नदियों को |
करण | नदी (से, द्वारा) | नदियों (से, द्वारा) |
संप्रदान | नदी के लिए | नदियों के लिए |
अपादान | नदी से | नदियों से |
संबंध | नदी (का, के, की) | नदियों (का, के, की) |
अधिकरण | नदी (में, पर) | नदियों (में, पर) |
संबोधन | हे नदी | हे नदियो |
(बन्धु)
कारक | एकवचन | बहुवचन |
---|---|---|
कर्ता | बन्धु, बन्धुबंद ने | बन्धु, नदियों ने |
कर्म | बन्धु, बन्धु को | बन्धु, नदियों को |
करण | बन्धु (से, द्वारा) | बन्धुओं (से, द्वारा) |
संप्रदान | बन्धु के लिए | बन्धुओं के लिए |
अपादान | बन्धु से | बन्धुओं से |
संबंध | बन्धु (का, के, की) | बन्धुओं (का, के, की) |
अधिकरण | बन्धु (में, पर) | बन्धुओं (में, पर) |
संबोधन | हे बन्धु | हे बन्धुओ |
FAQ
Q : करक किसे कहते है?
Ans : संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो वाक्य के अन्य शब्दों क क्रिया से अपना संबंध प्रकट करता है, कारक कहते है।
Q : करक के कितने भेद है?
Ans : कारक के आठ भेद हैं, जो कर्ता, कर्म, कारण, संप्रदान, अपादान, संबंध, अधिकरण, संबोधन है।
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