Rahim Ke Dohe | रहीम के प्रसिद्ध दोहें हिन्दी अर्थ सहित

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Rahim Ke Dohe

अकबर के नवरत्नों मे से एक अब्दुर्रहीम खानखाना अथार्थ रहीम के दोहा संग्रह मे से कुछ प्रसिद्ध दोहे आपके लिए पेश है।

Rahim ke Dohe | रहीम के दोहें

1). रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
     टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।

अर्थ- प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता. यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है।


2). रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
 पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।

अर्थ- रहीम जी ने इस दोहे मे पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जिसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं है। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा विनम्रता रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है।


3). जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
         गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन नहीं घटता, क्योंकि गिरिधर (कृष्ण) को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती।


4). तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
        कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।

अर्थ- रहीम जी का कहना है की वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीती है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो होते है जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं।


5). आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
            ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि।।

अर्थ- ज्यों ही कोई किसी से कुछ मांगता है त्यों ही आबरू, आदर और आंख से प्रेम चला जाता है।


Rahim Ke Dohe

6). जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
      कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।

अर्थ- जो गरीब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं। जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना है।


7). बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
     रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय।।

अर्थ- जब बात बिगड़ जाती है तो किसी के लाख कोशिश करने के बाद भी नहीं बनती है। ठीक उसी तरह जैसे कि दूध को मथने से मक्खन नहीं निकलता।


8). चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
                जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि जिन्हें कुछ नहीं चाहिए वो राजाओं के राजा हैं। क्योंकि उन्हें ना तो किसी चीज की चाह है, ना ही चिंता और मन तो बिल्कुल बेपरवाह है।


9). रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
          उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि।।

अर्थ- जो व्यक्ति किसी से कुछ मांगने के लिए जाता है वो तो मरे हुए हैं ही परन्तु उससे पहले ही वे लोग मर जाते हैं जिनके मुंह से कुछ भी नहीं निकलता है।


10). खीरा सिर ते काटिये,  मलियत नमक लगाय।
           रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि खीरे को सिर से काटना चाहिए और उस पर नमक लगाना चाहिए। यदि किसी के मुंह से कटु वाणी निकले तो उसे भी यही सजा होनी चाहिए।


Rahim Ke Dohe

11). रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
     जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि बड़ों को देखकर छोटों को भगा नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां छोटे का काम होता है वहां बड़ा कुछ नहीं कर सकता। जैसे कि सुई के काम को तलवार नहीं कर सकती।


12). बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
      रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

अर्थ- रहीम जी कहते है मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए,क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा।


13). समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
    सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है. सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है।


14). वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
          बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है. जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है।


15). जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
          गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन नहीं घटता, क्योंकि गिरिधर (कृष्ण) को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती।


Rahim Ke Dohe

16). खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
     रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान।।

अर्थ- रहीमदास जी कहते है दुनिया जानती है कि खैरियत, खून, खांसी, खुशी, दुश्मनी, प्रेम और मदिरा का नशा छुपाए नहीं छुपता है।


17). छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
           कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।।

अर्थ- बड़ों को क्षमा शोभा देती है और छोटों को उत्पात (बदमाशी)। अर्थात अगर छोटे बदमाशी करें कोई बड़ी बात नहीं और बड़ों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिए। छोटे अगर उत्पात मचाएं तो उनका उत्पात भी छोटा ही होता है। जैसे यदि कोई कीड़ा (भृगु) अगर लात मारे भी तो उससे कोई हानि नहीं होती।


18). चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
                  जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह।।

अर्थ- रहीम जी कहते है जिन्हें कुछ नहीं चाहिए वो राजाओं के राजा हैं। क्योंकि उन्हें ना तो किसी चीज की चाह है, ना ही चिंता और मन तो बिल्कुल बेपरवाह है।


19). रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
       जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर।।

अर्थ- रहीम जी कहते है जब बुरे दिन आए हों तो चुप ही बैठना चाहिए, क्योंकि जब अच्छे दिन आते हैं तब बात बनते देर नहीं लगती।


20). माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
     फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि।।

अर्थ- रहीम जी कहते है माली को आते देखकर कलियां कहती हैं कि आज तो उसने फूल चुन लिया पर कल को हमारी भी बारी भी आएगी क्योंकि कल हम भी खिलकर फूल हो जाएंगे।


निष्कर्ष :-

उम्मीद है की इस लेख में दिए गए (Rahim ke Dohe) रहीम के प्रसिद्ध दोहों का संग्रह आपको पसंद आया होगा, इस लेख में दिए गए दोहे आपको कैसा लगे आप हमे कमेन्ट करके जरूर बताए। यदि आपको और भी प्रसिद्ध दोहों का संग्रह देखना हो तो आप हमारे साथ बने रहें।

मै निशांत सिंह राजपूत इस ब्लॉग का लेखक और संस्थापक हूँ, अगर मै अपनी योग्यता की बात करू तो मै MCA का छात्र हूँ.

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