यहाँ इस लेख में आपको सत्य पर संस्कृत श्लोक हिंदी भावार्थ सहित उपलब्ध कराएँगे अगर आप सत्य पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित चाहते है तो इस लेख पर बने रहे है।
Sanskrit Shlok on Truth With Hindi
(1)
सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्याऽभ्यासेन रक्ष्यते ।
मृज्यया रक्ष्यते रुपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते ॥
भावार्थ : धर्म का रक्षण सत्य से, विद्या का अभ्यास से, रुप का सफाई से, और कुल का रक्षण आचरण करने से होता है ।
(2)
सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः ।
सत्येन वायवो वान्ति सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम् ॥
भावार्थ : सत्य से पृथ्वी का धारण होता है, सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से पवन चलता है । सब सत्य पर आधारित है ।
(3)
नास्ति सत्यसमो धर्मो न सत्याद्विद्यते परम् ।
न हि तीव्रतरं किञ्चिदनृतादिह विद्यते ॥
भावार्थ : सत्य जैसा अन्य धर्म नहीं । सत्य से पर कुछ नहीं । असत्य से ज्यादा तीव्रतर कुछ नहीं ।
(4)
सत्यमेव व्रतं यस्य दया दीनेषु सर्वदा ।
कामक्रोधौ वशे यस्य स साधुः – कथ्यते बुधैः ॥
भावार्थ : ‘केवल सत्य’ ऐसा जिसका व्रत है, जो सदा दीन की सेवा करता है, काम-क्रोध जिसके वश में है, उसी को ज्ञानी लोग ‘साधु’ कहते हैं ।
(5)
सत्यमेव जयते नानृतम् सत्येन पन्था विततो देवयानः ।
येनाक्रमत् मनुष्यो ह्यात्मकामो यत्र तत् सत्यस्य परं निधानं ॥
भावार्थ : जय सत्य का होता है, असत्य का नहीं । दैवी मार्ग सत्य से फैला हुआ है । जिस मार्ग पे जाने से मनुष्य आत्मकाम बनता है, वही सत्य का परम् धाम है ।
(6)
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् ।
नासत्यं च प्रियं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः ॥
भावार्थ : सत्य और प्रिय बोलना चाहिए; पर अप्रिय सत्य नहीं बोलना और प्रिय असत्य भी नहीं बोलना यह सनातन धर्म है ।
(7)
नानृतात्पातकं किञ्चित् न सत्यात् सुकृतं परम् ।
विवेकात् न परो बन्धुः इति वेदविदो विदुः ॥
भावार्थ : वेदों के जानकार कहते हैं कि अनृत (असत्य) के अलावा और कोई पातक नहीं; सत्य के अलावा अन्य कोई सुकृत नहीं और विवेक के अलावा अन्य कोई भाई नहीं ।
(8)
अग्निना सिच्यमानोऽपि वृक्षो वृद्धिं न चाप्नुयात् ।
तथा सत्यं विना धर्मः पुष्टिं नायाति कर्हिचित् ॥
भावार्थ : अग्नि से सींचे हुए वृक्ष की वृद्धि नहीं होती, जैसे सत्य के बिना धर्म पुष्ट नहीं होता ।
(9)
ये वदन्तीह सत्यानि प्राणत्यागेऽप्युपस्थिते ।
प्रमाणभूता भूतानां दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥
भावार्थ : प्राणत्याग की परिस्थिति में भी जो सत्य बोलता है, वह प्राणियों में प्रमाणभूत है । वह संकट पार कर जाता है ।
(10)
सत्यहीना वृथा पूजा सत्यहीनो वृथा जपः ।
सत्यहीनं तपो व्यर्थमूषरे वपनं यथा ॥
भावार्थ : उज्जड जमीन में बीज बोना जैसे व्यर्थ है, वैसे बिना सत्य की पूजा, जप और तप भी व्यर्थ है ।
(11)
भूमिः कीर्तिः यशो लक्ष्मीः पुरुषं प्रार्थयन्ति हि ।
सत्यं समनुवर्तन्ते सत्यमेव भजेत् ततः ॥
भावार्थ : भूमि, कीर्ति, यश और लक्ष्मी, सत्य का अनुसरण करनेवाले पुरुष की प्रार्थना करते हैं । इस लिए सत्य को हि भजना चाहिए ।
(12)
सत्यं स्वर्गस्य सोपानं पारावरस्य नौरिव ।
न पावनतमं किञ्चित् सत्यादभ्यधिकं क्वचित् ॥
भावार्थ : समंदर के जहाज की तरह, सत्य स्वर्ग का सोपान है । सत्य से ज़ादा पावनकारी और कुछ नहीं ।
(13)
सत्येन पूयते साक्षी धर्मः सत्येन वर्धते ।
तस्मात् सत्यं हि वक्तव्यं सर्ववर्णेषु साक्षिभिः ॥
भावार्थ : सत्य वचन से साक्षी पावन बनता है, सत्य से धर्म बढता है । इस लिए सभी वर्णो में, साक्षी ने सत्य हि बोलना चाहिए ।
Satya Par Sanskrit Shlok in Hindi
(14)
तस्याग्निर्जलमर्णवः स्थलमरिर्मित्रं सुराः किंकराः कान्तारं नगरं गिरि र्गृहमहिर्माल्यं मृगारि र्मृगः । पातालं बिलमस्त्र मुत्पलदलं व्यालः श्रृगालो विषं पीयुषं विषमं समं च वचनं सत्याञ्चितं वक्ति यः ॥
भावार्थ : जो सत्य वचन बोलता है, उसके लिए अग्नि जल बन जाता है, समंदर जमीन, शत्रु मित्र, देव सेवक, जंगल नगर, पर्वत घर, साँप फूलों की माला, सिंह हिरन, पाताल दर, अस्त्र कमल, शेर लोमडी, झहर अमृत, और विषम सम बन जाते हैं ।
(15)
सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्याऽभ्यासेन रक्ष्यते।
मृज्यया रक्ष्यते रुपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते।।
भावार्थ : धर्म की रक्षा सत्य से, ज्ञान से अभ्यास से, रूप से स्वच्छता से और परिवार की रक्षा आचरण से होती है।
(16)
अग्निना सिच्यमानोऽपि वृक्षो वृद्धिं न चाप्नुयात्।
तथा सत्यं विना धर्मः पुष्टिं नायाति कर्हिचित्।।
भावार्थ: आग से सिंचित वृक्ष नहीं बढ़ता, जैसे सत्य के बिना धर्म का विकास नहीं होता।
(17)
तस्याग्निर्जलमर्णवः स्थलमरिर्मित्रं सुराः किंकराः
कान्तारं नगरं गिरि र्गृहमहिर्माल्यं मृगारि र्मृगः।
पातालं बिलमस्त्र मुत्पलदलं व्यालः श्रृगालो विषं
पीयुषं विषमं समं च वचनं सत्याञ्चितं वक्ति यः।।
भावार्थ : सत्य बोलने वाले के लिए अग्नि जल बन जाती है, समुद्र भूमि बन जाता है, शत्रु मित्र, देव सेवक, जंगल नगर, पर्वत घर, सर्प पुष्पों की माला, सिंह हिरण, अधोलोक, कमल, सिंह, लोमड़ी, जल का अमृत और विषमताएँ सम हो जाती हैं।
(18)
सत्यधर्मं समाश्रित्य यत्कर्म कुरुते नरः।
तदेव सकलं कर्म सत्यं जानीहि सुव्रते।।
भावार्थ : हे सुव्रता! एक आदमी जो सच्चे धर्म के सहारे काम करता है कि हर काम सच है, ऐसी समझ।
(19)
नानृतात्पातकं किञ्चित् न सत्यात् सुकृतं परम्।
विवेकात् न परो बन्धुः इति वेदविदो विदुः।।
भावार्थ : वेदों के विद्वान कहते हैं कि अनृत (असत्य) के अलावा और कोई बुराई नहीं है; सत्य के अलावा कोई अच्छा नहीं है और विवेक के अलावा कोई भाई नहीं है।
(20)
ये वदन्तीह सत्यानि प्राणत्यागेऽप्युपस्थिते।
प्रमाणभूता भूतानां दुर्गाण्यतितरन्ति ते।।
भावार्थ : जो त्याग की दशा में भी सत्य बोलता है, वह जीवों में प्रत्यक्ष है। वह संकट से गुजरता है।
(21)
सत्यहीना वृथा पूजा सत्यहीनो वृथा जपः।
सत्यहीनं तपो व्यर्थमूषरे वपनं यथा।।
भावार्थ : जिस प्रकार वीरान भूमि में बीज बोना व्यर्थ है, उसी प्रकार सत्य के बिना पूजा, जप और तपस्या भी व्यर्थ है।
(22)
सत्येन पूयते साक्षी धर्मः सत्येन वर्धते।
तस्मात् सत्यं हि वक्तव्यं सर्ववर्णेषु साक्षिभिः।।
भावार्थ : सत्य के वचन से बुद्धि शुद्ध होती है, सत्य से धर्म की वृद्धि होती है। इसलिए सभी वर्णों में साक्षी को सत्य बोलना चाहिए।
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