Sanskrit Slogans in Hindi : अगर आपको संस्कृत में स्लोगन चाहिए तो आप बिलकुल सही जगह पर आये यहाँ आपको एक से बढ़कर एक Sanskrit Slogans With Hindi आपको उपलब्द कराये है जो आपको काफी पसंद आएगा।
संस्कृत स्लोगन भावार्थ सहित – Sanskrit Slogans Meaning in Hindi
(1)
नास्ति बुद्धिमतां शत्रुः ॥
भावार्थ : बुद्धिमानो का कोई शत्रु नहीं होता ।
(2)
विद्या परमं बलम ॥
भावार्थ : विद्या सबसे महत्वपूर्ण ताकत है ।
(3)
सक्ष्मात् सर्वेषों कार्यसिद्धिभर्वति ॥
भावार्थ : क्षमा करने से सभी कार्ये में सफलता मिलती है ।
(4)
न संसार भयं ज्ञानवताम् ॥
भावार्थ : ज्ञानियों को संसार का भय नहीं होता ।
(5)
वृद्धसेवया विज्ञानत् ॥
भावार्थ : वृद्ध – सेवा से सत्य ज्ञान प्राप्त होता है ।
(6)
सहायः समसुखदुःखः ॥
भावार्थ : जो सुख और दुःख में बराबर साथ देने वाला होता है सच्चा सहायक होता है ।
(7)
आपत्सु स्नेहसंयुक्तं मित्रम् ॥
भावार्थ : विपत्ति के समय भी स्नेह रखने वाला ही मित्र है ।
(8)
मित्रसंग्रहेण बलं सम्पद्यते ॥
भावार्थ : अच्छे और योग्य मित्रों की अधिकता से बल प्राप्त होता है ।
(10)
सत्यमेव जयते ॥
भावार्थ : सत्य अपने आप विजय प्राप्त करती है ।
(11)
उपायपूर्वं न दुष्करं स्यात् ॥
भावार्थ : उपाय से कार्य कठिन नहीं होता ।
(12)
विज्ञान दीपेन संसार भयं निवर्तते ॥
भावार्थ : विज्ञानं के दीप से संसार का भय भाग जाता है ।
(13)
सुखस्य मूलं धर्मः ॥
भावार्थ : धर्म ही सुख देने वाला है ।
(14)
धर्मस्य मूलमर्थः ॥
भावार्थ : धन से ही धर्म संभव है ।
(15)
विनयस्य मूलं विनयः ॥
भावार्थ : वृद्धों की सेवा से ही विनय भाव जाग्रत होता है ।
(16)
अलब्धलाभो नालसस्य ॥
भावार्थ : आलसी को कुछ भी प्राप्त नहीं होता ।
(17)
आलसस्य लब्धमपि रक्षितुं न शक्यते ॥
भावार्थ : आलसी प्राप्त वस्तु की भी रक्षा नहीं कर सकता ।
(18)
हेतुतः शत्रुमित्रे भविष्यतः ॥
भावार्थ : किसी कारण से ही शत्रु या मित्र बनते हैं ।
(19)
बलवान हीनेन विग्रहणीयात् ॥
भावार्थ : बलवान कमज़ोर पर ही आक्रमण करे ।
(20)
दुर्बलाश्रयो दुःखमावहति ॥
भावार्थ : दुर्बल का आश्रय दुःख देता है ।
(21)
नव्यसनपरस्य कार्यावाप्तिः ॥
भावार्थ : बुरी आदतों में लगे हुए मनुष्य को कार्य की प्राप्ति नहीं होती ।
(22)
अर्थेषणा न व्यसनेषु गण्यते ॥
भावार्थ : घन की अभिलाषा रखना कोई बुराई नहीं मानी जाती ।
(23)
अग्निदाहादपि विशिष्टं वाक्पारुष्यम् ॥
भावार्थ : वाणी की कठोरता अग्निदाह से भी बढ़कर है ।
(24)
आत्मायत्तौ वृद्धिविनाशौ ॥
भावार्थ : वृद्धि और विनाश अपने हाथ में है ।
(25)
अर्थमूलं धरकामौ ॥
भावार्थ : धन ही सभी कार्याे का मूल है ।
(26)
कार्यार्थिनामुपाय एव सहायः ॥
भावार्थ : उद्यमियों के लिए उपाय ही सहायक है ।
(27)
कार्य पुरुषकारेण लक्ष्यं सम्पद्यते ॥
भावार्थ : निश्चय कर लेने पर कार्य पूर्ण हो जाता है ।
(28)
असमाहितस्य वृतिनर विद्यते ॥
भावार्थ : भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर कुछ भी प्राप्त नहीं होता ।
(29)
पूर्वं निश्चित्य पश्चात् कार्यभारभेत् ॥
भावार्थ : पहले निश्चय करें, फिर कार्य आरंभ करें ।
(30)
कार्यान्तरे दीघर्सूत्रता न कर्तव्या ॥
भावार्थ : कार्य के बीच में आलस्य न करें ।
Sanskrit Slogan in Hindi
(31)
कालवित् कार्यं साधयेत् ॥
भावार्थ : समय के महत्व को समझने वाला निश्चय ही अपना कार्य सिद्धि कर पता है ।
(32)
भाग्यवन्तमपरीक्ष्यकारिणं श्रीः परित्यजति ॥
भावार्थ : बिना विचार कार्य करने वाले भाग्शाली को भी लक्ष्मी त्याग देती है ।
(32)
यो यस्मिन् कर्माणि कुशलस्तं तस्मित्रैव योजयेत् ॥
भावार्थ : जो मनुष्य जिस कार्य में निपुण हो, उसे वही कार्य सौंपना चाहिए ।
(33)
दुःसाध्यमपि सुसाध्यं करोत्युपायज्ञः ॥
भावार्थ : उपायों का ज्ञाता कठिन को भी आसान बना देता है।
(34)
अप्रयत्नात् कार्यविपत्तिभर्वती ॥
भावार्थ : प्रयास न करने से कार्य का नाश होता है ।
(35)
शोकः शौर्यपकर्षणः ॥
भावार्थ : शोक मनुष्य के शौर्य को नष्ट कर देता है ।
(36)
न सुखाल्लभ्यते सुखम् ॥
भावार्थ : सुख से सुख की वृद्धि नहीं होती ।
(37)
स्वभावो दुरतिक्रमः ॥
भावार्थ : स्वभाव का अतिक्रमण कठिन है ।
(38)
मित्रता-उपकारफलं मित्रमपकारोऽरिलक्षणम् ॥
भावार्थ : उपकार करना मित्रता का लक्षण है और अपकार करना शत्रुता का ।
(39)
सर्वथा सुकरं मित्रं दुष्करं प्रतिपालनम्
भावार्थ : मित्रता करना सहज है लेकिन उसको निभाना कठिन है ।
(40)
ये शोकमनुवर्त्तन्ते न तेषां विद्यते सुखम् ॥
भावार्थ : शोकग्रस्त मनुष्य को कभी सुख नहीं मिलता ।
(41)
सुख-दुर्लभं हि सदा सुखम् ॥
भावार्थ : सुख सदा नहीं बना रहता है ।
(42)
सर्वे चण्डस्य विभ्यति ॥
भावार्थ : क्रोधी पुरुष से सभी डरते हैं ।
(43)
मृदुर्हि परिभूयते ॥
भावार्थ : मृदु पुरुष का अनादर होता है ।
(44)
शब्दमात्रात् न भीतव्यम् ॥
भावार्थ : शब्द – मात्र से डरना उचित नहीं ।
(45)
उपायेन हि यच्छक्यं न तच्छक्यं पराक्रमैः ॥
भावार्थ : उपय द्वारा जो काम हो जाता है वह पराक्रम से नहीं हो पता ।
(46)
उपायेन जयो यदृग्रिपोस्तादृड्डं न हेतिभिः ॥
भावार्थ : उपाय से शत्रु को जीतो, हथियार से नहीं ।
(47)
यस्य बुद्धिर्बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम् ॥
भावार्थ : बली वही है, जिसके पास बुद्धि-बल है ।
(48)
न ह्राविज्ञातशीलस्य प्रदातव्यः प्रतिश्रयः ॥
भावार्थ : अज्ञात या विरोधी प्रवृत्ति के व्यक्ति को आश्रय नहीं देना चाहिए ।
(49)
सेवाधर्मः परमगहनो ॥
भावार्थ : सेवाधर्म बड़ा कठिन धर्म है ।
(50)
बलवन्तं रिपु दृष्ट् वा न वामान प्रकोपयेत् ॥
भावार्थ : शत्रु अधिक बलशाली हो तो क्रोध प्रकट न करे, शान्त हो जाए ।
(50)
यद् भविष्यो विनश्यति ॥
भावार्थ : ‘जो होगा देखा जाएगा’ कहने वाले नष्ट हो जाते हैं।
(51)
बहूनामप्यसाराणां समवायो हि दुर्जयः ॥
भावार्थ : छोटे और निर्बल भी संख्या में बहुत होकर दुर्जेय हो जाते हैं ।
(52)
उपदेशो हि मूर्खणां प्रकोपाय न शान्तये ॥
भावार्थ : उपदेश से मूर्खो का क्रोध और भी भड़क उठता है, शान्त नहीं होता ।
(53)
उपदेशो न दातव्यो यादृशे तादृशे जने ॥
भावार्थ : जिस-तिसको उपदेश देना उचित नहीं ।
(54)
किं करोत्येव पाण्डित्यमस्थाने विनियोजितम् ॥
भावार्थ : अयोग्य को मिले ज्ञान का फल विपरीत ही होता है।
(55)
उपायं चिन्तयेत्प्राज्ञस्तथा पायं च चिन्तयेत् ॥
भावार्थ : उपाय की चिन्ता के साथ, दुष्परिणाम की भी चिन्ता कर लेनी चाहिए ।
(56)
पण्डितोऽपि वरं शत्रुर्न मूर्खो हितकारकः ॥
भावार्थ : हितचिंतक मूर्ख की अपेक्षा अहितचिंतक बुद्धिमान अच्छा होता है ।
(57)
हेतुरत्र भविष्यति ॥
भावार्थ : बिना कारण कुछ भी नहीं हो सकता ।
(58)
अतितृष्णा न कर्तव्या, तृष्णां नैव परित्यजेत् ॥
भावार्थ : लोभ तो स्वाभाविक है, किन्तु अतिशय लोभ मनुष्य का सर्वनाश कर देता है।
(59)
शत्रवोऽपि हितायैव विवदन्तः परस्परम् ॥
भावार्थ : परस्पर लड़ने वाले शत्रु भी हितकारी होते हैं ।
(60
स्वजातिः दुरतिक्रमा ॥
भावार्थ : स्वजातीय ही सबको प्रिय होते हैं ।
Sanskrit Slogan Hindi Meaning
(61)
अनागतं यः कुरुते स शोभते ॥
भावार्थ : आनेवाले संकट को देखकर अपना भावी कार्यक्रम निश्चित करने वाला सुखी रहता है ।
(62)
जानन्नपि नरो दैवात्प्रकरोति विगर्हितम् ॥
भावार्थ : सब कुछ जानते हुए भी जो मनुष्य बुरे काम में प्रवृत्त हो जाए, वह मनुष्य नहीं गधा है ।
(63)
मौंन सर्व थेसाधकम् ॥
भावार्थ : वाचालता विनाशक है, मौन में बड़े गुण हैं ।
(64)
छात्राः अनुशासिताः भवेयुः ॥
भावार्थ : छात्रों को अनुशासित होना चाहिए ।
(65)
धनात् धर्मः भवति ॥
भावार्थ : धन से धर्म होता है ।
(66)
सत्यमेव जयते न अनृतम् ॥
भावार्थ : सत्य की ही जय होती है असत्य की नहीं ।
(67)
अध्ययनेन/अध्ययनं वीना ज्ञानं न भवति ॥
भावार्थ : अध्ययन के बिना ज्ञान नहीं होता है ।
(68)
यः कार्यं न पश्यति सोऽन्धः ॥
भावार्थ : जो कार्य को नहीं देखता वह अंधा है ।
(69)
सदाचारः सर्वेषां धर्माणां श्रेष्ठः अस्ति ॥
भावार्थ : सदाचार सभी धर्मों में श्रेष्ठ है ।
(70)
आचारात् एव बुद्धिः भवति ॥
भावार्थ : आचार से ही बुद्धि होती है ।
(71)
परिश्रमस्य फलं मधुरं भवति ॥
भावार्थ : परिश्रम का फल मीठा होता है ।
(72)
अनुशासनेन एव मनुष्यः महान् भवति ॥
भावार्थ : अनुशाशन से ही मनुष्य महान होता है ।
(73)
अपरीक्ष्यकारिणं श्रीः परित्यजति ॥
भावार्थ : बिना विचारे कार्य करने वाले को लक्ष्मी त्याग देती हैं ।
(74)
स्वजनं तर्पयित्वा यः शेषभोजी सोऽमृतभोजी ॥
भावार्थ : अपनी शक्ति को जानकर ही कार्य आरंभ करें ।
(75)
नास्ति भीरोः कार्यचिन्ता ॥
भावार्थ : कायर को कार्य की चिन्ता नहीं होती ।
(76)
नास्त्यप्राप्यं सत्यवताम् ॥
भावार्थ : सत्य-सम्पन्न लोगों के लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं हैं ।
(77)
संस्कृतं देवानं भाषा अस्ति ॥
भावार्थ : संस्कृत देवताओं की भाषा है ।
(78)
संतोषवत् न किमपि सुखम् अस्ति ॥
भावार्थ : संतोष के समान कोई सुख नहीं है ।
(79)
ईश्वरस्य पूजा वृथा न भवति ॥
भावार्थ : ईश्वर की पूजा व्यर्थ नहीं जाती है ।
(80)
संस्कृतं भाषाणां जननी अस्ति ॥
भावार्थ : संस्कृत भाषाओं की जननी है ।
(81)
छात्राणां धर्मः अध्ययनम् अस्ति ॥
भावार्थ : छात्रों का धर्म अध्ययन है ।
(82)
विद्या धनेषु उत्तमा वर्त्तते ॥
भावार्थ : विद्या धनों में उत्तम है ।
(83)
सदा सत्यं वदेत् ॥
भावार्थ : सदा सत्य बोलना चाहिए ।
(84)
छात्रैः परिश्रमेण पठितव्यम् ॥
भावार्थ : छात्रों को परिश्रम से पढ़ना चाहिए ।
(85)
अस्माभिः सदा चरित्रं रक्षणीयम् ॥
भावार्थ : हमें सदा चरित्र की रक्षा करनी चाहिए ।
(86)
विद्यया लभते ज्ञानम् ॥
भावार्थ : विद्या से ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
(87)
अस्तयभाषणं पापं वर्तते ॥
भावार्थ : झूठ बोलना पाप है ।
(88)
श्रध्दा ज्ञानं ददाति, नम्रता मानं ददाति, योग्यता स्थानं ददाति ॥
भावार्थ : श्रद्धा ज्ञान देती है, नम्रता मान देती है और योग्यता स्थान देती है ।
(89)
असंहताः विंनश्यन्ति ॥
भावार्थ : जो लोग बिखर कर रहते है वे नष्ट हो जाते हैं ।
(90)
संहतिः कार्यसाधिका ॥
भावार्थ : मिलजुल कर कार्य करने से कार्य की सिद्धि होती है ।
(91)
ईश्वरस्य स्मरणं प्रभाते उत्थाय अवश्यं कर्तंव्यम् ॥
भावार्थ : सवेरे उठकर ईश्वर का स्मरण अवश्य करना चाहिए।
Sanskrit Slogan With Hindi Meaning
(92)
अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता ॥
भावार्थ : अच्छी तरह बोली गई वाणी अलग अलग प्रकार से मानव का कल्याण करती है ।
(93)
वृध्दा न ते ये न वदन्ति धर्मम् ॥
भावार्थ : जो धर्म की बात नहीं करते वे वृद्ध नहीं हैं ।
(94)
श्रोतव्यं खलु वृध्दानामिति शास्त्रनिदर्शनम् ॥
भावार्थ : वृद्धों की बात सुननी चाहिए एसा शास्त्रों का कथन है ।
(95)
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ॥
भावार्थ : शरीर धर्म पालन का पहला साधन है ।
(96)
को लोकमाराधयितुं समर्थः ॥
भावार्थ : सभी को कौन खुश कर सकता है
(97)
लोभमूलानि पापानि ॥
भावार्थ : सभी पाप का मूल लोभ है ।
(98)
अन्तो नास्ति पिपासायाः ॥
भावार्थ : तृष्णा का अन्त नहीं है ।
(99)
मृजया रक्ष्यते रूपम् ॥
भावार्थ : स्वच्छता से रूप की रक्षा होती है ।
(100)
तद् रूपं यत्र गुणाः ॥
भावार्थ : जिस रुप में गुण है वही उत्तम रुप है ।
(101)
सत्यभाषणं पुण्यं वर्तते ॥
भावार्थ : सच बोलना पुण्य है ।
(102)
यशोधनानां हि यशो गरीयः ॥
भावार्थ : यशरूपी धनवाले को यश हि सबसे महान वस्तु है।
(103)
वरं मौनं कार्यं न च वचनमुक्तं यदनृतम् ॥
भावार्थ : असत्य वचन बोलने से मौन धारण करना अच्छा है।
(104)
मौनं सर्वार्थसाधनम् ॥
भावार्थ : मौन यह सर्व कार्य का साधक है ।
(105)
कुलं शीलेन रक्ष्यते ॥
भावार्थ : शील से कुल की रक्षा होती है ।
(106)
सर्वे मित्राणि समृध्दिकाले ॥
भावार्थ : समृद्धि काल में सब मित्र बनते हैं ।
(107)
न मातुः परदैवतम् ॥
भावार्थ : माँ से बढकर कोई देव नहीं है ।
(108)
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥
भावार्थ : पुत्र कुपुत्र होता है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं होती ।
(109)
गुरुणामेव सर्वेषां माता गुरुतरा स्मृता ॥
भावार्थ : सब गुरु में माता को सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है ।
(110)
मनः शीघ्रतरं बातात् ॥
भावार्थ : मन वायु से भी अधिक गतिशील है ।
(111)
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ॥
भावार्थ : मन हि मानव के बंधन और मोक्ष का कारण है ।
(112)
भाग्यं फ़लति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषम् ॥
भावार्थ : भाग्य हि फ़ल देता है, विद्या या पौरुष नहीं ।
(113)
चराति चरतो भगः ॥
भावार्थ : चलेनेवाले का भाग्य चलता है ।
(114)
सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता ॥
भावार्थ : जैसी भवितव्यता हो एसे हि सहायक मिल जाते हैं।
(115)
यदभावि न तदभावी भावि चेन्न तदन्यथा ॥
भावार्थ : जो नहीं होना है वो नहीं होगा, जो होना है उसे कोई टाल नहीं सकता ।
(116)
बलवन्तो हि अनियमाः नियमा दुर्बलीयसाम् ॥
भावार्थ : बलवान को कोई नियम नहीं होते, नियम तो दुर्बल को होते हैं ।
(117)
स्वभावो दुरतिक्रमः ॥
भावार्थ : स्वभाव बदलना मुश्किल है ।
(118)
बह्वाश्र्चर्या हि मेदनी ॥
भावार्थ : पृथ्वी अनेक आश्र्चर्यों से भरी हुई है ।
(119)
पितृदोषेण मूर्खता ॥
भावार्थ : पिता के दोष से हि संतान मूर्ख होती है ।
(120)
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः ॥
भावार्थ : पिता प्रसन्न हो तो सब देव प्रसन्न होते हैं ।
(121)
पात्रत्वाद् धनमाप्नोति ॥
भावार्थ : पात्रता होने से इन्सान धन प्राप्त करता है ।
(122)
विनयाद् याति पात्रताम् ॥
भावार्थ : विनय से इन्सान पात्रता प्राप्त करता है ।
(123)
दुःखेनासाद्यते पात्रम् ॥
भावार्थ : सत्पात्र व्यक्ति मुश्किल से मिलती है ।
(124)
दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति ॥
भावार्थ : दैव हि सब कुछ देता है एसा कायर लोग कहते हैं।
(125)
हस्तस्य भूषणं दानम् ॥
भावार्थ : दान हाथ का भूषण है ।
(126)
दीयमानं हि नापैति भूय एवाभिवर्तते ॥
भावार्थ : जो दिया जाता है वह कम नहीं होता बल्कि बढता है ।
(127)
गृहेऽपि पज्चेन्द्रियनिग्रहः तपः ॥
भावार्थ : घर में रहकर पाँचों इन्द्रियों को वशमें रखना तप है।
(128)
जननी जन्मभूमुश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
भावार्थ : जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है ।
(129)
कृतज्ञः सर्वलोकेषु पूज्यो भवति सर्वदा ॥
भावार्थ : कृतज्ञ मानवी सर्वदा सर्व लोगों में पूजा जाता है ।
(130)
उपायेन हि यच्छक्यं तन्न शक्यं पराक्रमैः ॥
भावार्थ : जो काम उपाय से हो शकता है वह पराक्रम से नहीं होता ।
(131)
नोपकारात् परो धर्मो नापकारादधं परम् ॥
भावार्थ : उपकार जैसा दूसरा कोई धर्म नहीं; अपकार जैसा दूसरा पाप नहीं ।
(132)
कुर्वाणो नावसीदति ॥
भावार्थ : कुछ न कुछ काम करनेवाला नाश नहीं होता ।
(133)
उद्यमे नावसीदति ॥
भावार्थ : उद्यम करनेवाला नाश नहीं होता ।
(134)
सोत्साहानां नास्त्यसाध्यं नराणाम् ॥
भावार्थ : उत्साही मानव को कुछ भी असाध्य नहीं होता ।
(135)
उत्साहवन्तः पुरुषाः नावसीदन्ति कर्मसु ॥
भावार्थ : उत्साही लोग काम करने में पीछे नहीं हटते ।
(136)
कुतो विद्यार्थिनः सुखम् ॥
भावार्थ : विद्यार्थी को सुख कहाँ ?
(137)
किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या ॥
भावार्थ : कल्पलता की तरह विद्या कौन सा काम नहीं सिध्ध कर देती ?
(138)
सा विद्या या विमुक्तये ॥
भावार्थ : मनुष्य को मुक्ति दिलाये वही विद्या है ।
(139)
विद्या योगेन रक्ष्यते ॥
भावार्थ : विद्या का रक्षण अभ्यास से होता है ।
(140)
विद्वान सर्वत्र पूज्यते ॥
भावार्थ : विद्वान को सभी जगह सम्मान मिलता है ।
(141)
यत्नवान् सुखमेधते ॥
भावार्थ : प्रयत्नशील मानव सुख पाता है ।
(142)
आयुर्वेदः : स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं च।
भावार्थ : आयुर्वेद वह विज्ञान है, जिसका उद्देश्य स्वस्थ्य व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी के विकार को शमन करना है।
(143)
वसुधैव कुटुम्बकम्: अन्तर्भावना से समस्त मनुष्य एक परिवार का ही हिस्सा है।
भावार्थ : “वसुधैव कुटुम्बकम्” का अर्थ है कि समस्त मानव एक परिवार का ही हिस्सा है और उनमें भावना के आधार पर एकता बनी रहनी चाहिए। इस श्लोक से विश्ववादी भावना को प्रोत्साहित किया जाता है।
(144)
सत्यमेव जयते: सत्य हमेशा विजयी होता है।
भावार्थ : “सत्यमेव जयते” का अर्थ है कि सत्य हमेशा विजयी होता है और अंततः सत्य की ही विजय होती है। यह श्लोक भारतीय संस्कृति में सत्य के महत्व को प्रतिपादित करता है।
(145)
अहिंसा परमो धर्मः: अहिंसा सर्वोपरि धर्म है।
भावार्थ : “अहिंसा परमो धर्मः” का अर्थ है कि अहिंसा धर्म का सबसे उच्च परमाणु है और यह धर्म का सर्वोपरि सिद्धांत है। इस श्लोक से अहिंसा के महत्व का जिक्र किया जाता है जो भारतीय दर्शनिकता और धर्म शास्त्रों में महत्वपूर्ण सिद्धांत है।
(146)
यतो धर्मस्ततो जयः: जहां धर्म है, वहां विजय है।
भावार्थ : “यतो धर्मस्ततो जयः” का अर्थ है कि जहां धर्म विद्यमान है, वहां विजय होती है। इस श्लोक से सत्य, न्याय, और धर्म के महत्व को प्रतिपादित किया जाता है।
इसे भी पढ़े :-