Ganesh Mantra in Hindi : हिन्दू घर्म में मंत्रो का बड़ा ही प्रभाव है शादी-विवाह से लेकर किसी भी पूजा-पाठ को मंत्रो द्वारा ही किया जाता है हिन्दू धर्म के अनुसार पूजा पाठ को शुरू करने से पहले सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है।
आज इस लेख में हम आपको गणेश मंत्र अर्थ सहित उपलब्द कराये है जिससे पढने वाले को मंत्र का अर्थ भी पता चल पाए।
गणेश मंत्र भावार्थ सहित – Ganesh Mantra in Hindi
(1)
वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा ॥
भावार्थ : हे हाथी के जैसे विशालकाय जिसका तेज सूर्य की सहस्त्र किरणों के समान हैं । बिना विघ्न के मेरा कार्य पूर्ण हो और सदा ही मेरे लिए शुभ हो ऐसी कामना करते है ।
(2)
नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं।
गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च॥
भावार्थ : मैं उन भगवान् गजानन की वन्दना करता हूँ, जो समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाले हैं, सुवर्ण तथा सूर्य के समान देदीप्यमान कान्ति से चमक रहे हैं, सर्पका यज्ञोपवीत धारण करते हैं, एकदन्त हैं, लम्बोदर हैं तथा कमल के आसनपर विराजमान हैं ।
(3)
एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।
विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥
भावार्थ : जो एक दाँत से सुशोभित हैं, विशाल शरीरवाले हैं, लम्बोदर हैं, गजानन हैं तथा जो विघ्नोंके विनाशकर्ता हैं, मैं उन दिव्य भगवान् हेरम्बको प्रणाम करता हूँ ।
(4)
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
भावार्थ : विघ्नेश्वर, वर देनेवाले, देवताओं को प्रिय, लम्बोदर, कलाओंसे परिपूर्ण, जगत् का हित करनेवाले, गजके समान मुखवाले और वेद तथा यज्ञ से विभूषित पार्वतीपुत्र को नमस्कार है ; हे गणनाथ ! आपको नमस्कार है ।
(5)
द्वविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिवं।
राजानं चाविरोद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम्॥
भावार्थ : जिस प्रकार बिल में रहने वाले मेढक, चूहे आदि जीवों को सर्प खा जाता है, उसी प्रकार शत्रु का विरोध न करने वाले राजा और परदेस गमन से डरने वाले ब्राह्मण को यह समय खा जाता है ।
(6)
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥
भावार्थ : जो हाथी के समान मुख वाले हैं, भूतगणादिसे सदा सेवित रहते हैं, कैथ तथा जामुन फल जिनके लिए प्रिय भोज्य हैं, पार्वती के पुत्र हैं तथा जो प्राणियों के शोक का विनाश करनेवाले हैं, उन विघ्नेश्वर के चरणकमलों में नमस्कार करता हुँ।
(7)
रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षकं।
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात्॥
भावार्थ : हे गणाध्यक्ष रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिये । हे तीनों लोकों के रक्षक! रक्षा कीजिए; आप भक्तों को अभय प्रदान करनेवाले हैं, भवसागर से मेरी रक्षा कीजिये ।
(8)
केयूरिणं हारकिरीटजुष्टं चतुर्भुजं पाशवराभयानिं।
सृणिं वहन्तं गणपं त्रिनेत्रं सचामरस्त्रीयुगलेन युक्तम्॥
भावार्थ : मैं उन भगवान् गणपतिकी वन्दना करता हूँ जो केयूर-हार-किरीट आदि आभूषणों से सुसज्जित हैं, चतुर्भुज हैं और अपने चार हाथों में पाशा अंकुश-वर और अभय मुद्रा को धारण करते हैं, जो तीन नेत्रों वाले हैं, जिन्हें दो स्त्रियाँ चँवर डुलाती रहती हैं ।
(9)
गजाननाय महसे प्रत्यूहतिमिरच्छिदे ।
अपारकरुणापूरतरङ्गितदृशे नमः ॥
भावार्थ : विघ्नरूप अन्धकार का नाश करनेवाले, अथाह करुणारूप जलराशि से तरंगति नेत्रों वाले गणेश नामक ज्योतिपुंज को नमस्कार है ।
(10)
पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुद्रा ।
मायाविनां दुर्विभावयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
भावार्थ : जो पुराणपुरुष हैं और प्रसन्नतापूर्वक नाना प्रकार की क्रीडाएँ करते हैं ; जो माया के स्वामी हैं तथा जिनका स्वरूप दुर्विभाव्य है, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।
(11)
प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुगमम्॥
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम् ॥
भावार्थ : जो इन्द्र आदि देवेश्वरों के समूह से वन्दनीय हैं, अनाथों के बन्धु हैं, जिनके युगल कपोल सिन्दूर राशि से अनुरञ्जित हैं, जो प्रवल विघ्नों का खण्डन करने के लिए प्रचण्ड दण्डस्वरूप हैं, उन श्रीगणेश जी का मैं प्रातः काल स्मरण करता हूँ ।
(12)
आवाहये तं गणराजदेवं रक्तोत्पलाभासमशेषवन्द्दम् ।
विध्नान्तकं विध्नहरं गणेशं भजामि रौद्रं सहितं च सिद्धया ॥
भावार्थ : जो देवताओं के गण के राजा हैं, लाल कमल के समान जिनके देह की आभा है, जो सबके वन्दनीय हैं, विघ्न के काल हैं, विघ्नों को हरनेवाले हैं, शिवजी के पुत्र हैं, उन गणेशजी का मैं सिद्धि के साथ आवाहन और भजन करता हूँ ।
(13)
परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम् ।
गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
भावार्थ : जो परात्पर, चिदानन्दमय, निर्विकार, सबके हृदय में अंतर्यामी रूप से स्थित, गुणातीत एवं गुणमय हैं, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।
(14)
तमोयोगिनं रुद्ररूपं त्रिनेत्रं जगद्धारकं तारकं ज्ञानहेतुम् ।
अनेकागमैः स्वं जनं बोधयन्तं सदा सर्वरूपं गणेशं नमामः ॥
भावार्थ : जो तमो गुण के सम्पर्क से रुद्ररूप धारण करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो जगत् के हर्ता, तारक और ज्ञान के हेतु हैं तथा जो अनेक आगमोक्त वचनों द्धारा अपने भक्तजनों को सदा तत्त्वज्ञानोपदेश देते रहते हैं, उन सर्वरूप गणेश को हम नमस्कार करते हैं ।
(15)
सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया ।
सर्वविध्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
भावार्थ : जो स्वेच्छा से संसार की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं, उन सर्वविघ्नहारी देवता मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।
(16)
सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम् ।
सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
भावार्थ : जो सर्वशक्तिमय, सर्वरूपधारी, सर्वव्यापक और सम्पूर्ण विद्याओं के प्रवक्ता हैं, उन भगवान् मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।
- सरस्वती मंत्र अर्थ सहित
- शिव मंत्र भावार्थ सहित
- नवग्रह वैदिक मंत्र
- माँ दुर्गा के मंत्र
- लक्ष्मी मंत्र भावार्थ सहित
(17)
पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् ।
भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
भावार्थ : जो पार्वती जी को पुत्र रूप से आनन्द प्रदान करते और भगवान् शंकर का भी आनन्द बढ़ाते हैं, उन भक्तानन्दवर्धन मयूरेश गणेश को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ।
(18)
तमः स्तोमहारनं जनाज्ञानहारं त्रयीवेदसारं परब्रह्मसारम् ।
मुनिज्ञानकारं विदूरेविकारं सदा ब्रह्मरुपं गणेशं नमामः ॥
भावार्थ : जो अज्ञानान्धकार राशि के नाशक, भक्तजनों के अज्ञान के निवारक, तीनों वेदों के सारस्वरूप, परब्रह्मसार, मुनियों को ज्ञान देनेवाले तथा मनोविकारों से सदा दूर रहनेवाले हैं । उन ब्रह्मरूप गणेश को हम नमस्कार करते हैं ।
(19)
सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् ।
सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
भावार्थ : जो समस्त वस्तुविषयक अज्ञान के निवारक, सम्पूर्ण ज्ञान के उद्घावक, पवित्र, सत्य-ज्ञानस्वरूप तथा सत्यनामधारी हैं, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।
(20)
अनेककोटिब्रह्याण्डनायकं जगदीश्वरम् ।
अनन्तविभवं विष्णु मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
भावार्थ : जो अनेक कोटि ब्रह्माण्ड के नायक, जगदीश्वर, अनन्त वैभवसम्पन्न तथा सर्वव्यापी विष्णुरूप हैं, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।
(21)
गजाननाय पूर्णाय साङ्ख्यरूपमयाय ते ।
विदेहेन च सर्वत्र संस्थिताय नमो नमः ॥
भावार्थ : हे गणेश्वर ! आप गज के समान मुख धारण करने वाले, पूर्ण परमात्मा और ज्ञानस्वरूप हैं । आप निराकार रूप से सर्वत्र विद्यमान हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है ।
(22)
अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते ।
मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः ॥
भावार्थ : हे हेरम्ब ! आपको किन्ही प्रमाणों द्वारा मापा नहीं जा सकता, आप परशु धारण करने वाले हैं, आपका वाहन मूषक है । आप विश्वेश्वर को बारम्बार नमस्कार है ।
(23)
अनन्तविभायैव परेषां पररुपिणे ।
शिवपुत्राय देवाय गुहाग्रजाय ते नमः ॥
भावार्थ : आपका वैभव अनन्त है, आप परात्पर हैं, भगवान् शिव के पुत्र तथा स्कन्द के बड़े भाई हैं, आप देव को नमस्कार है ।
(24)
पार्वतीनन्दनायैव देवानां पालकाय ते ।
सर्वेषां पूज्यदेहाय गणेशाय नमो नमः ॥
भावार्थ : जो देवी पार्वती को आनन्दित करने वाले, देवताओं के रक्षक हैं और जिनका श्रीविग्रह सबके लिए पूजनीय है, उन आप गणेशजी को बारम्बार नमस्कार है ।
(25)
स्वनन्दवासिने तुभ्यं शिवस्य कुलदैवत ।
विष्णवादीनां विशेषेण कुलदेवताय ते नमः ॥
भावार्थ : भगवान शिव के कुलदेवता आप अपने स्वरूपभूत स्वानन्द-धाम मे निवास करनेवाले हैं। विष्णु आदी देवताओं के तो आप विशेषरूप से कुलदेवता हैं । आपको नमस्कार है ।
(26)
योगाकाराय सर्वेषां योगशान्तिप्रदाय च ।
ब्रह्मेशाय नमस्तुभ्यं ब्रह्मभूतप्रदाय ते ॥
भावार्थ : आप योगस्वरूप एवं सबको योगजनित शांति प्रदान करने वाले हैं । ब्रह्म भाव की प्राप्ति करानेवाले आप ब्रह्मेश्वर को नमस्कार है ।
(27)
ऊँ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने ।
दुष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने ॥
भावार्थ : सम्पूर्ण सौख्य प्रदान करनेवाले सच्चिदानन्दस्वरूप विघ्नराज गणेशको नमस्कार है । जो दुष्ट अरिष्ट ग्रहोंका नाश करनेवाले परात्परा परमात्मा हैं, उन गणपति को नमस्कार है ।
(28)
सिद्धिबुद्धि पते नाथ सिद्धिबुद्धिप्रदायिने ।
मायिन मायिकेभ्यश्च मोहदाय नमो नमः ॥
भावार्थ : नाथ ! आप सिद्धि और बुद्धि के पति हैं तथा सिद्धि और बुद्धि प्रदान करने वाले हैं । माया के अधिपति तथा मायावियों को मोह मे डालने वाले हैं । आपको बारम्बार नमस्कार है
(29)
लम्बोदराय वै तुभ्यं सर्वोदरगताय च ।
अमायिने च मायाया आधाराय नमो नमः ॥
भावार्थ : आप लंबोदर हैं, जठरानल रूप मे सबके उदर मे निवास करते हैं, आप पर किसी की माया नही चलती और आप ही माया के आधार हैं । आपको बार-बार नमस्कार है ।
(30
त्रिलोकेश गुणातीत गुणक्षोम नमो नमः ।
त्रैलोक्यपालन विभो विश्वव्यापिन् नमो नमः ॥
भावार्थ : हे त्रैलोक्य के स्वामी ! हे गुणातीत ! हे गुणक्षोभक ! आपको बार-बार नमस्कार है । हे त्रिभुवनपालक ! हे विश्वव्यापिन् विभो ! आपको बार-बार नमस्कार है ।
(31)
मायातीताय भक्तानां कामपूराय ते नमः ।
सोमसूर्याग्निनेत्राय नमो विश्वम्भराय ते ॥
भावार्थ : मायातीत और भक्तों की कामना-पूर्ति करनेवाले आपको नमस्कार है । चन्द्र, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं और जो विश्व का भरण करने वाले हैं, उन आपको नमस्कार है ।
गणेश जी का मंत्र भावार्थ सहित
(32)
जय विघ्नकृतामाद्या भक्तनिर्विघ्नकारक ।
अविघ्न विघ्नशमन महाविध्नैकविघ्नकृत् ॥
भावार्थ : हे विघ्नकर्ताओं के कारण ! हे भक्तों के निर्विघ्न-कारक, विघ्नहीन, विघ्नविनाशन, महाविघ्नों के मुख्य विघ्न करनेवाले ! आपकी जय हो ।
(33)
नमस्ते गणनाथाय गणानां पतये नमः ।
भक्तिप्रियाय देवेश भक्तेभ्यः सुखदायक ॥
भावार्थ : भक्तों की सुख देनेवाले हे देवेश्वर ! आप भक्तिप्रिय हैं तथा गणों के अधिपति है । आप गणनाथ को नमस्कार है ।
(34)
एकदन्तं महाकायं तप्तकाञ्चनसन्निभम् ।
लम्बोदरं विशालाक्षं वन्देऽहं गणनायकम् ॥
भावार्थ : एक दाँतवाले, महान् शरीरवाले, तपाये गये सुवर्ण के समान कान्तिवाले, लम्बे पेटवाले और बड़ी-बड़ी आँखोंवाले गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।
(35)
मात्रे पित्रे च सर्वेषां हेरम्बाय नमो नमः ।
अनादये च विघ्नेश विघ्नकर्त्रे नमो नमः ॥
भावार्थ : सबके माता और पिता हेरम्ब को बारम्बार नमस्कार है । हे विघ्नेश्वर ! आप अनादि और विघ्नों के भी जनक हैं , आपको बार-बार नमस्कार है ।
(36)
लम्बोदरं महावीर्यं नागयज्ञोपशोभितम् ।
अर्धचन्द्रधरं देवं विघ्नव्यूहविनाशनम् ॥
भावार्थ : जो महापराक्रमी, लम्बोदर, सर्पमय यज्ञोपवीत से सुशोभित, अर्धचन्द्रधारी और विघ्न-समूह का विनाश करनेवाले हैं, उन गणपतिदेव की मैं वन्दना करता हूँ ।
(37)
गुरुदराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यासिताय ।
गोप्याय गोपिताशेषभुवनाय चिदात्मने ॥
भावार्थ : जो भारी पेटवाले, गुरु, गोप्ता (रक्षक), गूढ़स्वरुप तथा सब ओर से गौर हैं, जिनका स्वरूप और तत्त्व गोपनीय हैं तथा जो समस्त भुवनों के रक्षक हैं, उन चिदात्मा आप गणपति को नमस्कार है ।
(38)
विश्वमूलाय भव्याय विश्वसृष्टिकराय ते ।
नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुणिडने ॥
भावार्थ : जो विश्व के मूल कारण, कल्याणस्वरूप, संसार की सृष्टि करनेवाले, सत्यरूप, सत्यपूर्ण तथा शुण्डधारी हैं, उन आप गणेश को बारम्बार नमस्कार है ।
(39)
वेदान्तवेद्यं जगतामधीशं देवादिवन्द्यं सुकृतैकगम्यम् ।
स्तम्बेरमास्यं नवचन्द्रचूडं विनायकं तं शरणं प्रपद्ये ॥
भावार्थ : मैं उन भगवान् विनायक की शरण ग्रहण करता हूँ, जो वेदान्त में वर्णित परब्रह्म हैं, त्रिभुवन के अधिपति हैं, देवता-सिद्धादि से पूजित हैं, एकमात्र पुण्य से ही प्राप्त होते हैं और जिन गजानन के भालपर द्धितीया की चन्द्ररेखा सुशोभित रहती है ।
(40)
नमामि देवं द्धिरदाननं तं यः सर्वविघ्नं हरते जनानाम् ।
धर्मार्थकामांस्तनुतेऽखिलानां तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय ॥
भावार्थ : मैं उन गजाननदेव को नमस्कार करता हूँ, जो लोगों के समस्त विघ्नों का अपहरण करते हैं । जो सबके लिए धर्म, अर्थ और कामका विस्तार करते हैं, उन विघ्नविनाशन गणेश को नमस्कार है ।
(41)
द्धिरदवदन विषमरद वरद जयेशान शान्तवरसदन ।
सदनवसादन सादनमन्तरायस्य रायस्य ॥
भावार्थ : हाथी के मुख वाले, एकदन्त, वरदायी, ईशान, परमशान्ति एवं समृद्धि के आश्रय, सज्जनों के क्लेशहर्ता और विघ्नविनाशक हे गणपति ! आपकी जय हो ।
(42)
सर्वविघ्नहरं देवं सर्वविघ्नविवर्जितमम् ।
सर्वसिद्धिप्रदातारं वन्देऽहं गणनायकम् ॥
भावार्थ : सभी प्रकार के विघ्नों का हरण करनेवाले, सभी प्रकार के विघ्नों से रहित तथा सभी प्रकार की सिद्धियों को देनेवाले भगवान् गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।
(43)
विश्वमूलाय भव्याय विश्वसृष्टिकराय ते ।
नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने ॥
भावार्थ : जो विश्व के मूल कारण, कल्याणस्वरूप संसार की सृष्टि करनेवाले, सत्यरूप, सत्यपूर्ण तथा शुण्डधारी हैं, उन आप गणेश्वर को बारम्बार नमस्कार है ।
(44)
एकदन्ताय शुद्घाय सुमुखाय नमो नमः ।
प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने ॥
भावार्थ : जिनके एक दाँत और सुन्दर मुख है, जो शरणागत भक्तजनों के रक्षक तथा प्रणतजनों की पीड़ा का नाश करनेवाले हैं, उन शुद्धस्वरूप आप गणपति को बारम्बार नमस्कार है ।
(45)
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् ।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये ॥
भावार्थ : भक्तके हृदयमें वास करनेवाले गौरी पुत्र विनायक को वंदन करने के पश्चात , दीर्घायु , सुख -समृद्धि एवं सर्व इच्छा पूर्ति हेतु उनका अखंड स्मरण करना चाहिए !
(46)
नमस्ते योगरूपाय सम्प्रज्ञातशरीरिणे ।
असम्प्रज्ञातमूर्ध्ने ते तयोर्योगमयाय च ॥
भावार्थ : हे गणेश्वर ! सम्प्रज्ञात समाधि आपका शरीर तथा असम्प्रज्ञात समाधि आपका मस्तक है । आप दोनों के योगमय होने के कारण योगस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है ।
(47)
वामाङ्गे भ्रान्तिरूपा ते सिद्धिः सर्वप्रदा प्रभो ।
भ्रान्तिधारकरूपा वै बुद्धिस्ते दक्षिणाङ्गके ॥
भावार्थ : प्रभो ! आपके वामांग में भ्रान्तिरूपा सिद्धि विराजमान हैं, जो सब कुछ देनेवाली हैं तथा आपके दाहिने अंग में भ्रान्तिधारक रूपवाली बुद्धि देवी स्थित हैं ।
(48)
मायासिद्धिस्तथा देवो मायिको बुद्धिसंज्ञितः ।
तयोर्योगे गणेशान त्वं स्थितोऽसि नमोऽस्तु ते ॥
भावार्थ :
भ्रान्ति अथवा माया सिद्धि है और उसे धारण करनेवाले गणेशदेव मायिक हैं । बुद्धि संज्ञा भी उन्ही की है । हे गणेश्वर ! आप सिद्धि और बुद्धि दोनों के योग में स्थित हैं । आपको बारम्बार नमस्कार है ।
(49)
जगद्रूपो गकारश्च णकारो ब्रह्मवाचकः ।
तयोर्योगे गणेशाय नाम तुभ्यं नमो नमः ॥
भावार्थ : गकार जगत्स्वरूप है और णकार ब्रह्मका वाचक है । उन दोनों के योग में विद्यमान आप गणेश-देवता को बारम्बार नमस्कार है ।
(50)
चौरवद्भोगकर्ता त्वं तेन ते वाहनं परम् ।
मूषको मूषकारूढो हेरम्बाय नमो नमः ॥
भावार्थ : आप चौर की भाँति भोगकर्ता हैं, इसलिए आपका उत्कृष्ट वाहन मूषक है । आप मूषक पर आरूढ़ हैं । आप हेरम्ब को बारम्बार नमस्कार है ।
(51)
किं स्तौमि त्वां गणाधीश योगशान्तिधरं परम् ।
वेदादयो ययुः शान्तिमतो देवं नमाम्यहम्॥
भावार्थ : गणाधीश ! आप योगशान्तिधारी उत्कृष्ट देवता हैं, मैं आपको क्या स्तुति कर सकता हूँ ! आपकी स्तुति करने में तो वेद आदि भी शान्ति धारण कर लेते हैं अतः मैं आप गणेश देवता को नमस्कार करता हूँ ।
(52)
ब्रह्मभ्यो ब्रह्मदात्रे च गजानन नमोऽस्तु ते ।
आदिपूज्याय ज्येष्ठाय ज्येष्ठराजाय ते नमः ॥
भावार्थ : आप ब्राह्मणों को ब्रह्म देते हैं, हे गजानन ! आपको नमस्कार है । आप प्रथम पूजनीय, ज्येष्ठ और ज्येष्ठराज हैं, आपको नमस्कार है ।
(53)
अनामयाय सर्वाय सर्वपूज्याय ते नमः ।
सगुणाय नमस्तुभ्यं ब्रह्मणे निर्गुणाय च ॥
भावार्थ : आप रोगरहित, सर्वस्वरूप और सबके पूजनीय हैं आपको नमस्कार है । आप ही सगुन और निर्गुण ब्रह्म हैं, आपको नमस्कार है ।
(54)
गजवक्त्रं सुरश्रेष्ठं कर्णचामरभूषितम् ।
पाशाङ्कुशधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम् ॥
भावार्थ : हाथी के मुख वाले देवताओं में श्रेष्ठ, कर्णरूपी चामरों से विभूषित तथा पाश एवं अंकुश को धारण करनेवाले भगवान् गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।
(55)
मौञ्जीकृष्णाजिनधरं नागयज्ञोपवीतिनम् ।
बालेन्दुशकलं मौलौ वन्देऽहं गणनायकम् ॥
भावार्थ : मुंजकी मेखला एवं कृष्णमृगचर्म को धारण करनेवाले तथा नाग का यज्ञोपवीत पहननेवाले और सिरपर बालचन्द्रकला को धारण करनेवाले गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।
(56)
चित्ररत्नविचित्राङ्गं चित्रमालाविभूषितम् ।
कायरूपधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम् ॥
भावार्थ : विचित्ररत्नों से चित्रित अंगोंवाले, विचित्र मालाओं से विभूषित तथा शरीररूप धारण करनेवाले उन भगवान् गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।
(57)
मूषिकोत्तममारुह्य देवासुरमहाहवे ।
योद्धुकामं महावीर्यं वन्देऽहं गणनायकम् ॥
भावार्थ : श्रेष्ठ मूषक पर सवार होकर देवासुरमहासंग्राम में युद्ध की इच्छा करनेवाले महान् बलशाली गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।
(58)
अम्बिकाहृदयानन्दं मातृभिः परिवेष्टितम् ।
भक्तिप्रियं मदोन्मत्तं वन्देऽहं गणनायकम् ॥
भावार्थ : भगवती पार्वती के हृदय को आनन्द देनेवाले, मातृकाओं से अनावृत, भक्तों के प्रिय, मद से उन्मत्त की तरह बने हुए गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।
(59)
जय सिद्धिपते महामते जय बुद्धीश जडार्तसद्गते ।
जय योगिसमूहसद्गुरो जय सेवारत कल्पनातरो ॥
भावार्थ : हे सिद्धिपते ! हे महापते ! आपकी जय हो । हे बुद्धिस्वामिन् ! हे जड़मति तथा दुःखियों के सद्गति-स्वरूप ! आपकी जय हो ! हे योगियों के सद्गुरु ! आपकी जय हो । हे सेवापरायणजनों के लिये कल्पवृक्षस्वरूप ! आपकी जय हो !
(60)
जननीजनकसुखप्रदो निखलानिष्ठहरोऽखिलेष्टदः ।
गणनायक एव मामवेद्रदपाशाङ्कुमोदकान् दधत् ॥
भावार्थ : माता-पिता को सुख देनेवाले, सम्पूर्ण विघ्न दूर करनेवाले, सम्पूर्ण कामनाएँ पूर्ण करनेवाले एवं दन्त-पाश-अंकुश-मोदक धारण करनेवाले गणनायक मेरी रक्षा करें ।
(61)
गजराजमुखाय ते नमो मृगराजोत्तमवाहनाय ते ।
द्विजराजकलाभृते नमो गणराजाय सदा नमोऽस्तु ते ॥
भावार्थ : गजराज के समान मुखवाले आपको नमस्कार है, मृगराज से भी उत्तम वहनवाले आपको नमस्कार है, चन्द्रकलाधारी आपको नमस्कार है और गणों के स्वामी आपको सदा नमस्कार है ।
(62)
गणनाथ गणेश विघ्नराट् शिवसूनो जगदेकसद्गुरो ।
सुरमानुषगीतमद्यशः प्रणतं मामव संसृतेर्भयात् ॥
भावार्थ : हे गणनाथ ! हे गणेश ! हे विघ्नराज ! हे शिवपुत्र ! हे जगत् के एकमात्र सद्गुरु ! देवताओं तथा मनुष्यों के द्धारा किये गये उत्तम यशोगानवाले आप सांसारिक भय से मुझ शरणागत की रक्षा कीजिये ।