एकार्थक शब्द | Ekarthak Shabd in Hindi

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एकार्थक शब्द

Ekarthak Shabd in Hindi : आज इस लेख में आपके लिए एकार्थक शब्द उपलब्ध कराये है अक्सर जो छात्र हिंदी विषय से पढाई करते है उनके अक्सर Ekarthak Shabd लिखने को मिलता है इसलिए हर वो छात्र जिनको हिंदी विषय पढ़ना अनिवार्य उनको एकार्थक शब्द जानना जरुरी है।

ऐसे शब्द जिनके अर्थ प्रायः एक-से प्रतीत होते हैं, परंतु उनके अर्थ में भिन्नता रहती है उन्हें ‘एकार्थक शब्द’ कहा जाता है ऐसे शब्दों की एक संक्षिप्त सूची उदाहरण सहित निम्नांकित है।

Ekarthak Shabd in Hindi

अंतःकरण : विशुद्ध मन की विवेकपूर्ण शक्ति। जैसे—आप अपने अंतःकरण में झाँककर देखें।

आत्मा : जीवों में चेतन, अतींद्रिय और अभौतिक तत्त्व, जिसका कभी नाश नहीं होता। जैसे— आत्मा अविनाशी है।

अगोचर : जो इंद्रियों द्वारा न जाना जा सके, वरन् प्रज्ञा से जाना जा सके।  जैसे— ईश्वर अगोचर है।

अज्ञेय : जिसका बोध होना असंभव है।  जैसे— ईश्वर अज्ञेय है।

अतिरिक्त : वांछित पदार्थों से भी ज्यादा प्राप्त होना । जैसे— इसके अतिरिक्त मुझे और कुछ नहीं चाहिए।

अधिक : जरूरत से ज्यादा।  जैसे— उसकी आमदनी अधिक है।

काफी : जरूरत के मुताबिक ।  जैसे— बस इतने रुपए काफी हैं।

अध्यक्ष : किसी गोष्ठी, समिति या संस्था का स्थाई प्रधान। जैसे— डॉ. राजेंद्र प्रसाद ‘संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे ।

संभापति : किसी आयोजित बड़ी अस्थाई सभा का प्रधान जैसे— आज पांडेय जी को सभा का सभापति बनाया गया।

अनबन : दो व्यक्तियों का आपस में नहीं बनना। जैसे— इन दिनों ‘दोनों भाइयों में कौन किससे बढ़कर है, इसे लेकर अनबन है। 

खटपट : दो पक्षों या व्यक्तियों में साधारण झगड़ा। जैसे— गली में कूड़ा फेंकने के सवाल पर आज दोनों में खटपट हो गई।

अनभिज्ञ : जिसे किसी बात की जानकारी न हो।  जैसे— मैं इस मामले में अनभिज्ञ हूँ। 

अज्ञ : जो जानता नहीं हो, पर बताने पर जान जाए। जैसे— प्राचार्य महोदय इस संदर्भ में अज्ञ हैं, अबोध नहीं। 

अभिज्ञ : अनेक विषयों का बोध।  जैसे— वे इन विषयों के अभिज्ञ हैं।

विज्ञ : किसी खास विषय का अच्छा ज्ञान ।  जैसे— वे इस विषय के साधारण ज्ञाता हैं, इसके विज्ञ नहीं ।

अनुग्रह : छोटी कृपा। किसी छोटे व्यक्ति से प्रसन्न होकर उसका कुछ उपकार या भलाई करना। जैसे— भाई साहब! मेरे ऊपर यह आपका अनुग्रह है।

अनुकंपा : बड़ी कृपा किसी के दुःख से दुःखी होकर उसपर की गई दया।  जैसे— इस दुःख की घड़ी में आपने मुझे नौकरी दी यह मेरे परिवार पर आपकी अनुकंपा है।

अनुभव : अभ्यासादि द्वारा प्राप्त ज्ञान जैसे बच्चों को वर्षों तक पढ़ाने के बाद ही उसे शैक्षिक अनुभव प्राप्त हुआ है।

अनुभूति : चितन-मनन आदि द्वारा प्राप्त आंतरिक ज्ञान। जैसे— अनुभूति बिना विशेष ज्ञान संभव नहीं। 

अनुराग : किसी व्यक्ति/वस्तु पर शुद्ध भाव से मन केंद्रित हो जाना। जैसे— पुष्पवाटिका में ही राम और सीता के बीच अनुराग के बीज प्रस्फुटित हुए थे।

आसक्ति : मोहजनित प्रेम ही आसक्ति है।  जैसे— प्रेमासक्ति में आकंठ डूबा देख रत्नावली ने कटाक्ष करते हुए तुलसीदास को भक्ति का मार्ग दिखलाया।

अनुरूप : रूप के अनुसार।  जैसे— कृष्ण सचमुच राधा के अनुरूप थे।

अनुकूल : अपने पक्ष के मुताबिक।  जैसे—अभी वर्षानुकूल हवा है।

अन्वेषण : अज्ञात पदार्थ, स्थान आदि का पता लगाना। जैसे— मारकोनी ने रेडियो का अन्वेषण किया।

अनुसंधान : छानबीन, जाँच-पड़ताल आदि। जैसे— अपराधों के अनुसंधान से अपराधी तक पहुँचने में सहायता मिलती है। 

गवेषणा : किसी गूढ विषय की मूल स्थिति जानने के लिए गंभीर अध्ययन मनन आदि।  जैसे— डॉ. खुराना की जीन संबंधी गवेषणा मानव वंश की गुणात्मक वृद्धि के उपचारों का नवीनतम सूत्र है।

अपराध : कानून का उल्लंघन करना।  जैसे— किसी की हत्या करना एक संगीन अपराध है।

पाप : नैतिक नियमों का उल्लंघन करना।  जैसे— झूठ बोलना, चोरी करना आदि पाप है।

अभिनंदन : बड़ों का विधिवत् सम्मान।  जैसे— डॉ. राजेंद्र प्रसाद का अभिनंदन हमने इसी महाविद्यालय प्रांगण मे किया था। 

स्वागत : प्रथा या सभ्यता के अनुसार किसी का सम्मान करना।  जैसे— नवविवाहित जोड़े के स्वागत हेतु लोग द्वार पर खड़े थे।

अभिनेत्री : रंगमंच पर नारी की भूमिका अदा करनेवाली। जैसे— स्वर्गीय मीना कुमारी भारतीय रंगमंच की एक महान् अभिनेत्री थीं। 

नायिका : नाटक या उपन्यास आदि की मुख्य नारी।  जैसे— ‘अभिज्ञानशाकुंतलम्’ की मुख्य नायिका शकुंतला है।

अभिलाषा : किसी विशेष पदार्थ की हार्दिक इच्छा।  जैसे—श्रीराम ने धनुष तोड़कर जनक जी की अभिलाषा पूरी की।

इच्छा : किसी पदार्थ की साधारण इच्छा। जैसे—मेरी इच्छा है कि इस इच्छा कामना बार चारों धाम की यात्रा करूँ।

कामना : किसी विशेष पदार्थ की प्राप्ति की साधारण इच्छा। जैसे—मैने अपनी कामना नहीं प्रकट की।

अभिवादन : हाथ जोड़कर बड़ों का अभिवादन किया जाता है।  जैसे—शिष्यों ने आचार्य का अभिवादन किया। 

नमस्कार : समान अवस्थावाले को हाथ जोड़कर नमस्कार किया जाता है। जैसे—नमस्कार समधीजी ! नमस्कार मित्रो !

नमस्ते : सम आयु तथा छोटे-बड़े सभी को नमस्ते करना, इसमे हाथ जोड़ना आवश्यक नहीं।  जैसे— नमस्ते भाई! नमस्ते दोस्त ! 

प्रणाम : अपने से पूज्य को मस्तक झुकाकर तथा हाथ जोड़कर प्रणाम करना ।  जैसे—पिताजी/माताजी प्रणाम !

अमूल्य : जिसकी कीमत कोई दे न सके।  जैसे—इस संसार में विद्या ही एक अमूल्य निधि है ।

दुर्मूल्य : जिसका मूल्य हैसियत से ज्यादा हो।  जैसे— एलोपैथ चिकित्सा मेरे लिए दुर्मूल्य था, अतः होमियोपैथ चिकित्सा करा रहा हूँ। 

बहुमूल्य : अधिक एवं उचित मूल्य।  जैसे—-हीरा एक बहुमूल्य रत्न है।

अर्पण : अपने से बड़ों को जो भेंट दी जाती है। जैसे—शिष्यों ने अपने गुरु को अभिनंदन ग्रंथ अर्पित किया।

प्रदान : बड़ों की ओर से छोटों को दिया जाना।  जैसे—श्री बाबू ने हमारे लिए इस नगर को महाविद्यालय प्रदान किया था।

अवस्था : जीवन के कुछ बीते हुए काल या स्थिति। जैसे—आपकी अवस्था क्या है ? रोगी की अवस्था कैसी है?

आयु : संपूर्ण जीवन की अवधि।  जैसे—आप दीर्घायु हो ! 

वय : उम्र।  जैसे— हिंदुस्तान के तख्त पर बैठते समय अकबर किशोर वय का था।

अशुद्धि : लाई गई भूल, गंदगी।  जैसे—भाषा की अशुद्धि, भाषा-विकास को अवरुद्ध करती है। 

भूल : अपने-आप आई भूल।  जैसे—भूल ईश्वर भी माफ करते हैं।

अस्त्र : फेककर चलाया जानेवाला हथियार।  जैसे—तीर, बरछी आदि। 

शस्त्र : वह हथियार, जो हाथ में पकड़कर चलाया जाता है। जैसे—तलवार, भाला आदि ।

आगामी : आनेवाला समय।  जैसे—आगामी वर्ष में लंदन जाऊँगा।

भावी : भविष्य का बोध। जैसे—कोई व्यक्ति भावी घटना नहीं बता सकता।

आज्ञा : पूज्य या आदरणीय व्यक्ति द्वारा दिया गया कार्य-निर्देश।  जैसे—पिताजी की आज्ञा है कि घर के बाहर न जाऊँ। 

आदेश : किसी अधिकारी द्वारा दिया गया कार्य-निर्देश। जैसे जिलाधीश का आदेश है कि शहर में सर्वत्र शांति बनी रहे।

आदरणीय : अपने से बड़ों या महान व्यक्तियों के प्रति सम्मानसूचक शब्द । जैसे— आदरणीय दादा जी, आदरणीय मोदी जी आदि।

पुजनीय : पिता, गुरु या महापुरुषों के प्रति सम्मानसूचक शब्द। जैसे— पूजनीय पिताजी, पूजनीय गुरुवर आदि ।

आदि : सामान्यतया एक या दो उदाहरणों के बाद आदि का प्रयोग होता है। जैसे—मोहन आदि। राम और श्याम आदि ।

इत्यादि : दो से अधिक उदाहरणों के बाद इत्यादि का प्रयोग होता है। जैसे—— मोहन, सोहन, राम, श्याम इत्यादि ।

आधि : मानसिक कष्ट। जैसे—– आधि भी कुछ व्याधियों को जन्म देती है। 

व्याधि : शारीरिक कष्ट। जैसे—व्याधियों का उन्मूलन आधियों के उन्मूलन के बिना संभव नहीं।

आराधना : किसी देवता या गुरुजन के समक्ष दया की याचना।  जैसे— सोहन ने हनुमान् जी की बहुत आराधना की, पर वह फेल हो गया।

अर्चना : धूप, दीप, फूल इत्यादि से देवता की पूजा करना। जैसे—मैं प्रतिदिन सरस्वती जी की अर्चना करता हूँ।

उपासना : अपने इष्टदेव से किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए एकनिष्ठ साधना पूजा करना। जैसे—कठिन उपासना द्वारा ही रावण ने विशिष्ट सिद्धियाँ प्राप्त की थी। 

पूजा : बिना किसी सामग्री के भक्तिपूर्ण विनय अथवा प्रार्थना। जैसे—मै प्रतिदिन ईश्वर की पूजा करता हूँ।

आशंका : अमंगल होने का भय।  जैसे—आज पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने की आशंका है। : 

शंका : संदेह का भाव।  जैसे- शंका मत करो, वह साधु है, चोर नहीं।

आह्लाद : वह प्रसन्नता, जो क्षणिक किंतु तीव्र भावों से समन्वित हो , जैसे—हाय। विपक्षी टीम के इस छक्के ने खेल के आह्लाद को ले डूबा।

उल्लास : किसी अभिलषित पदार्थ की प्राप्ति की आशा में आनंद की प्राप्ति।  जैसे— बाढ़ से घिरे लोग मोटर वोट देखकर उल्लास से भर उठे।

ईर्ष्या : दूसरे की सफलता से जलना। जैसे—दूसरों की प्रगति देखकर ईर्ष्या करना स्वयं को ही जलाना है।

द्वेष : किसी अन्य के प्रति शत्रुता का भाव, घृणा आदि। जैसे— किसी के प्रति द्वेष नहीं रखना चाहिए, यही मानवता है।

उत्साह : काम करने की उमंग। जैसे— कर्मवीरों के हृदय में सतत कार्य करने का उत्साह रहता है।

साहस : साधन के अभाव में भी कार्य करने की पूरी लगन। जैसे—विद्यालय पहुँचने के लिए गंगा नदी को तैरकर पार करना शास्त्रीजी के साहस का परिचायक था।

उदाहरण : किसी विषय को सिद्ध करने के लिए दिया गया प्रमाण । जैसे— श्री शंकराचार्य ने सांसारिक क्षणभंगुरता के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। 

दृष्टांत : किसी बात की परिपुष्टि के लिए दिया गया तथ्य। जैसे—’चीटियाँ’ मेहनत और अनुशासन की दृष्टांत हैं।

उपकरण : किसी कार्य हेतु जुटाई गई सामग्री। जैसे— रंगशाला के सभी उपकरण ठीक हैं, अब परदा उठा दें। 

उपादान : किसी पदार्थ के निर्माण की सामग्री। जैसे— खीर तैयार करने हेतु चावल, चीनी एवं दूध आदि उपादान के साथ चूल्हा और बरतन भी चाहिए।

कंगाल : जिसे पेट पालने के लिए भीख माँगनी पड़े। जैसे—उस कंगाल को कुछ पैसे दे दो ।

दीन : निर्धनता के कारण जो दयापात्र हो। जैसे—दीन की सहायता करें । 

करुणा : दूसरों का दुःख देखकर द्रवित होना। जैसे- श्रीराम करुणा के सागर थे।

कृपा : अपने से छोटों पर दया करना। जैसे—भगवान् राम की विशेष कृपा हनुमान् पर थी।

दया : दूसरे के दुःख को दूर करने की स्वाभाविक इच्छा। जैसे— सुग्रीव की दुर्दशा -निवारण में श्रीराम दया के सागर सिद्ध हुए!

कलंक : चरित्र पर धब्बा लगना।  जैसे— असामाजिक तत्त्वों से संपर्क रखने पर कभी-न-कभी कलंक लग ही जाता है।

अपयश : सदा के लिए दोषी हो जाना। जैसे—चीन की कूटनीति को न समझ पाना और सन् 1962 के युद्ध में हुई पराजय ने नेहरू जी को अपयश का पात्र बना दिया था।

कष्ट : शारीरिक या मानसिक कष्ट। जैसे—बीस किलोमीटर पैदल चलने से जो कष्ट हुआ, मैं ही जानता हूँ।

क्लेश : मन के अप्रिय भावों का सूचक। जैसे—सारी संपन्नता के बावजूद पारिवारिक झगड़ों को देखकर मुझे क्लेश होता है।

पीड़ा : रोग के कारण शारीरिक कष्ट। जैसे—गठिया रोग के कारण उस वृद्धा को बहुत पीड़ा है।

क्रांति : जन-साधारण द्वारा शासन परिवर्तन के लिए संघर्ष। जैसे—रूस की राज्य क्रांति को कौन नहीं जानता है ?

विद्रोह : शासन के विरुद्ध कार्य। जैसे—1857 ई. में भारत में अँगरेजी शासन के विरुद्ध एक राजनीतिक विद्रोह हुआ था।

क्षोभ : सफलता न मिलने या असामाजिक स्थिति पर दुःखी होना। जैसे— परीक्षा में असफलता क्षोभ का कारण बना।

दुःख : साधारण कष्ट या मानसिक पीड़ा।  जैसे—उनकी आकस्मिक मृत्यु से दुःख हुआ।

खेद : किसी भूल पर दुःखी होना।  जैसे—मुझे खेद है कि मैं आपकी सहायता न कर सका। 

शोक : किसी की मृत्यु पर दुःखी होना ।  जैसे— इंदिरा गाँधी की मृत्यु पर सर्वत्र शोक छा गया था।

गौरव : अपनी शक्ति का उचित ज्ञान होना।  जैसे— मैंने समाज उत्थान के लिए जो कार्य किए, उसपर मुझे गौरव है। 

घमंड : सामर्थ्य नहीं रहने पर भी स्वयं को श्रेष्ठ समझना। जैसे— सामर्थ्य तो है नहीं, किंतु उसे स्वयं पर बहुत घमंड है। 

दर्प : एक भौतिक भावना।  जैसे— कभी-कभी बल का दर्प ही पराजय का कारण होता है।

अहंकार : यह आत्मिक भावना है।  जैसे—अपने पुण्यों पर अहंकार करना पाप समझा जाता है।

अभिमान : प्रतिष्ठा में अपने को बड़ा तथा दूसरों को छोटा समझना। जैसे—अपने अच्छे कार्यों पर आप गौरवान्वित हो सकते हैं. किंतु अभिमान से बचें।

ग्लानि : अपने कुकर्मों पर पछताना। जैसे—प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति को अपनी भूल पर ग्लानि होती है।

लज्जा : अनुचित काम करके मुँह छिपाना। जैसे—ऐसा काम मत करो कि लज्जा से मुँह छिपाना पड़े।

संकोच : किसी काम के करने में हिचक होना । जैसे— मुकदमे के लिए वकील को पैसे दे दो, संकोच मत करो। 

व्रीडा : स्वाभाविक लज्जा। जैसे—-वनवासी नारियों ने जब सीता से राम के साथ उनका नाता पूछा, तो सीता की वीडा से ही वे समझ गई कि राम सीता के पति है।

ग्रंथ : वह पुस्तक जिसमें गुरुता हो। जैसे—वेद सबसे प्राचीन ग्रंथ है।

पुस्तक : सभी प्रकार की छोटी-बड़ी पुस्तके। जैसे—दिनकर की ‘उर्वशी’ एक अच्छी पुस्तक है।

त्रुटि : कमी का भाव।  जैसे—इस पुस्तक की त्रुटियों पर ध्यान दें।

दोष : उचित-अनुचित का भाव।  जैसे—गुणों की तो सभी प्रशंसा करते हैं, परंतु दोषों पर भी तो किसी को बोलना चाहिए।

दक्ष : जो व्यक्ति किसी काम को अच्छी तरह और शीघ्र करता है।  जैसे—वह शिल्पकला में दक्ष है। है।

कुशल : जो हर काम में अपनी क्षमता का अच्छा प्रयोग जानता है। जैसे—वह एक कुशल कारीगर है।

निपुण : किसी कार्य या विषय का अच्छा जानकार।  जैसे—वह कंप्यूटर सिखलाने में निपुण है।

कर्मठ : किसी काम पर लगा रहनेवाला ।  जैसे—वह एक कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता है।

निकट : सामीप्य का बोध।  जैसे—मेरे गाँव के निकट एक मंदिर है। 

पास : अधिकार का बोध। 

जैसे—उसके पास कई घोड़े हैं।

निबंध : वह गद्य-रचना, जिसमें विषय गौण हो एवं लेखक का व्यक्तित्व तथा उसकी शैली प्रधान हो।  जैसे—मुझे डॉ. गणेश प्रसाद के ‘स्तरीय निबंध’ के सारे निबंध अच्छे लगे।

लेख : वह गद्य-रचना, जिसमें विषय की प्रधानता हो। 

जैसे—लेख लिखने में अनुभव से अधिक सचाई काम आती है।

निधन : महान् और लोकप्रिय व्यक्ति की मृत्यु को ‘निधन’ कहते हैं।  जैसे- ताशकंद में लालबहादुर शास्त्री का निधन हो गया था। 

मृत्यु : सामान्य व्यक्ति के शरीरांत को मृत्यु कहा जाता है।  जैसे—रोगी की मृत्यु हो गई। सोहनजी की मृत्यु हो गई है।

पत्नी : किसी की विवाहिता स्त्री।  जैसे—उसकी पत्नी शिक्षिका है।

महिला : भले घर की स्वी।  जैसे—वह एक भद महिला है।

स्त्री : कोई भी औरत।  जैसे—उस स्त्री के दो बच्चे हैं।

पारितोषिक : किसी प्रतियोगिता में विजयी को प्राप्त पारितोषिक।  जैसे— कल के पारितोषिक वितरण समारोह में मैं भी उपस्थित था।

पुरस्कार :  किसी व्यक्ति के अच्छे काम या सेवा पर पुरस्कार देना।  जैसे— दिनकर जी को ‘उर्वशी’ हेतु राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।

पुत्र : अपना बेटा।  जैसे—वह मेरा पुत्र है। 

बालक : कोई भी लड़का जैसे—उस बालक को चोट लग गई।

प्रणय : स्त्री-पुरुष का प्रेम।  जैसे— राधा-कृष्ण की लीला थी या राधा कृष्ण का प्रणय, यह रहस्य है।

श्रद्धा : बड़ों के प्रति विश्वासपूर्ण प्रेम। जैसे— गाँधीजी के प्रति मेरी असीम श्रद्धा है।

प्रार्थना : अपने से श्रेष्ठ जन, देवता आदि से कृपा हेतु। जैसे— ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि आप शीघ्र स्वस्थ हो जाएँ। 

अनुरोध : समान उम्रवाले या साधारण व्यक्तियों से। जैसे— मेरा है कि आप मेरे यहाँ एक बार अवश्य आएँ।

निवेदन : अधिकारी के समक्ष नम्रता का भाव बरतना ।  जैसे— श्रीमान् से निवेदन है कि मेरे आवेदन-पत्र पर विचार करें। 

आवेदन : दरखास्त।  जैसे—मेरा आवेदन-पत्र श्रीमान् के समक्ष है।

प्रेम : सम आयुवालों की स्वाभाविक प्रीति ।  जैसे—इन दोनों बच्चों की दोस्ती, सच्चे प्रेम का प्रतीक है।

स्नेह : अपने से छोटे के साथ प्रेम।  जैसे- भरत के प्रति श्रीराम का स्नेह समाज के लिए एक बड़ा उदाहरण है।

बड़ा : आकार का बोध ।  जैसे— आपका मकान बहुत बड़ा है। 

बहुत : परिमाण का बोध ।  जैसे—आज मैंने बहुत खाया।

बुद्धि : जानने, समझने और विचार करने की शक्ति।  जैसे—बुद्धि बहुत हद तक जन्मजात होती है। 

ज्ञान : इंद्रियों द्वारा प्राप्त अनुभव।  जैसे—मुझे इस कार्य का ज्ञान है।

भक्ति : देवता या गुरुजनों के प्रति प्रेम।  जैसे—भगवान् भक्ति से ही प्रसन्न होते हैं।

वात्सल्य : माता-पिता का संतान के प्रति प्रेम।  जैसे— माता-पिता बनने के बाद ही वात्सल्य की अनुभूति होती है।

मन : मन में संकल्प-विकल्प का होना।  जैसे— आज मन में यह संकल्प लो कि तुम यह काम पूरा करोगे। 

चित्त : चित्त में स्मरण-विस्मरण को होना। जैसे— मेरे चित्त में सारी बातें संगृहीत है।

महाशय : सामान्य लोगों के लिए।  जैसे— महाशय, कृपया इस पुस्तक को देखिए ।

महोदय : अपने से बड़ो या अधिकारियों के लिए। जैसे— सेवा में, माननीय मंत्री महोदय ।

मित्र : जिससे आत्मीयता का बोध हो। जैसे— वह मेरा परम मित्र है। 

बंधु : जो वियोग न सह सके।  जैसे— वे मेरे बंधु-बांधव है।

यंत्रणा : असहा दुःख का मानसिक अनुभव।  जैसे— जेल में आतंकवादियों को सिर्फ यातना ही नहीं, यंत्रणा भी दी गई।

यातना : आघात से उत्पन्न शारीरिक कष्टों की अनुभूति। जैसे—जेल में कैदी को यातना दी गई।

विषाद : अति दुःखी होने से किंकर्तव्यविमूढ़ होना।  जैसे—इस विषाद से वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया।

व्यथा : किसी आघात के कारण मानसिक, शारीरिक कष्ट या पीड़ा।  जैसे— मैं अपनी व्यथा किससे सुनाऊँ ।

संतोष : प्राप्त वस्तु को ही पर्याप्त मानना।  जैसे— संतोष में ही परम सुख है। 

तृप्ति : इच्छा पूरी होना।  जैसे— मेरी तो सारी इच्छाएँ तृप्त हो गई।

सखा : दो शरीर एक प्राण।  जैसे— कृष्ण सुदामा के सच्चे सखा थे ।

सुहद : उपकार का बदला जो व्यक्ति न चाहे।  जैसे- गणेश बाबू एक सुहृद व्यक्ति हैं।

सम्राट् : राजाओं का राजा।  जैसे—अशोक एक महान् समाद् थे 

राजा : एक साधारण भूपति।  जैसे— स्वतंत्रता के पहले हिंदुस्तान में लगभग 56 राजा थे।

सहानुभूति : किसी के दुःख का साधारण प्रभाव पड़ना ।  जैसे—-गरीब या लाचार व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए।

संवेदना : किसी के दुःख का गहरा प्रभाव पड़ना।  जैसे— प्रत्येक दुःखद घटना संवेदनशील व्यक्ति की संवेदना को जाग्रत कर देती है।

साधारण : एक ही आधार पर आश्रित व्यक्ति या वस्तु जिसमे कोई विशिष्ट गुण या चमत्कार न हो।  जैसे— वह एक साधारण व्यक्ति है।

सामान्य : जो दो या अनेक वस्तुओं में समान रूप से विद्यमान हो। जैसे— मैं सामान्य दिनों की तरह आज भी कार्य करता रहा।

सेवा : संकटग्रस्तों की सहायता करना ।  जैसे— गत वर्ष मैने भी बाढ़ पीड़ितों की सेवा की थी।  

सुश्रूषा : रोगी आदि की सेवा करना। जैसे— गत वर्ष मैने अपने बीमार पिता की सुश्रूषा की थी।

स्वच्छंदता : नियमों का पालन नहीं कर स्वच्छंद रहना। जैसे— कार्यालय में स्वच्छंदता अच्छी बात नहीं।

विच्छृंखलता : उद्दंडता  जैसे— विच्छृंखलता एक असभ्य कार्य है। 

स्वतंत्रता : स्वतंत्रता का प्रयोग व्यक्तियों के लिए होता है। जैसे— संविधान ने हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है।

स्वाधीनता : देश या राष्ट्र के लिए प्रयुक्त।  जैसे— हमारा देश 15 अगस्त, 1947 को स्वाधीन हुआ था।

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मै निशांत सिंह राजपूत इस ब्लॉग का लेखक और संस्थापक हूँ, अगर मै अपनी योग्यता की बात करू तो मै MCA का छात्र हूँ.

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